• होम
  • तस्वीरें
  • रेलवे ने स्टीम से चलने वाली क्रेन को किया प्रदर्शित, 30 टन उठाने की थी क्षमता

रेलवे ने स्टीम से चलने वाली क्रेन को किया प्रदर्शित, 30 टन उठाने की थी क्षमता

भारतीय रेलवे (Indian Railways) का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है. भारतीय रेलवे के लखनऊ स्थित आलमबाग स्थित कोचिंग डीपो में प्रदर्शित की जा रही एक क्रेन आजकल चर्चा का केंद्र बनी हुई है. इस क्रेन की खासबात ये थी कि ये भाप से चलाई जाती थी.
Updated on: January 22, 2020, 11.25 AM IST
1/5

आलमबाग स्थित रेलवे की कोचिंग वर्कशॉप को मेंटिनेंस के लिए बनाया गया था.

लखनऊ में आलमबाग स्थित रेलवे की कोचिंग वर्कशॉप को 1865 में रेलवे के डिब्बों की नियमित मेंटिनेंस और ओवरहॉलिंग के लिए बनाया गया था. से वर्कशॉप रेलवे की नॉर्दन रेलवे जोन के तहत काम करता है. इस कोचिंग डीपो में रेलवे की कई ऐतिहासिक वस्तुएं हैं. इनमें से एक स्टीम से चलने वाली क्रेन को काचिंग डीपो के गेट पर प्रदर्शित किया गया है.

2/5

स्टीम से चलने वाली ये क्रेन 30 टन तक का वजन उठा लेती थी

भारतीय रेलवे के लखनऊ स्थित आलमबाग स्थित कोचिंग डीपो में एक 30 टन क्षमता की ट्रेन को प्रदर्शित किया जा रहा है. 30 टन क्षमता की ट्रेन को काफी हैवी कैटेगरी की क्रेन माना जाता था.    

3/5

स्टीम से चलने वाली क्रेन को 1909 में इंग्लैंड से मंगाया गया था

भारतीय रेलवे (Indian Railways)  के लखनऊ स्थित आलमबाग कोचिंग डीपो में प्रदर्शित की जा रही इस स्टीम से चलने वाली क्रेन को 1909 में इंग्लैंड से मंगाया गया था. इस क्रेन का इस्तेमाल मुख्य रूप से मुरादाबाद मंडल में ब्रेकडाउन को ठीक करने के लिए किया जाता था.

4/5

ऐतिहासिक लखनऊ रेलवे स्टेशन है बेहद खूबसूरत

लखनऊ के चारबाग स्थित रेलवे स्टेशन को 70 लाख रुपये में बनाया गया था. इस स्टेशन को J.H. Hornimen ने डिजाइन किया था. इस स्टेशन को मार्च 1914 में बनाना शुरू किया गया और 1923 में इसका काम पूरा कर लिया गया. इस स्टेशन की बिल्डिंग को अगर ऊपर से देखा जाए तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने शतरंज बिछा रखा हो. इस स्टेशन में राजपूत, अवध और मुगल आर्किटेक्चर को ध्यान में रख कर बनाया गया है. 

5/5

1853 को मुंबई में चली थी पहली ट्रेन

भारत में पहली ट्रेन 16 अप्रैल 1853 को मुंबई के बोरीबंदर स्टेशन से ठाणे के बीच चलाई गई थी. देश में ट्रेन ने पहली बार 34 किलोमीटर लंबी दूरी का ये सफर तय किया. इसमें तीन भाप इंजनों के साथ 14 डिब्बों को इस रूट पर चलाया गया था. इसमें 400 यात्रियों को यात्रा कराई गई. 1853 में ही पहली ट्रेन चली और इसकी चर्चा उस समय ब्रिटेन के अखबारों में की गई थी.