Tax Saving की बात आते ही मन में लाइफ इंश्‍योरेंस, पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) और इक्विटी लिंक्‍ड सेविंग्‍स स्‍कीम जैसी योजनाएं आती हैं. टैक्‍स बचाने के ये सभी विकल्‍प धारा 80सी के तहत आते हैं. लगभग सभी टैक्‍सपेयर्स इस वास्‍तविकता को जानते होंगे कि धारा 80सी तहत आप अधिकतम 1.50 लाख रुपये तक की बचत कर सकते हैं. नि:संदेह, PPF उन लोगों के लिए टैक्‍स सेविंग के साथ-साथ निवेश का एक बेहतरीन जरिया है जो रिस्‍क नहीं लेना चाहते. हालांकि, PPF टैक्‍स सेविंग के नजरिये से कुछ लोगों के लिए बिल्‍कुल भी उपयुक्‍त जरिया नहीं है. आइए, जानते हैं इसकी वजह क्‍या है.

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बेसिक सैलरी ज्‍यादा होने पर EPF के मद में ज्‍यादा कटते हैं पैसे

आपने कभी गौर किया है कि आपकी बेसिक सैलरी का कितना हिस्‍सा EPF में जा रहा है? अगर नहीं तो अपनी सैलरी स्लिप को गौर से देखें. EPF में जमा की गई रकम पर भी इनकम टैक्‍स में डिडक्‍शन का लाभ मिलता है. मजे की बात यह है कि EPF भी आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत ही आता है. मतलब, लाइफ इंश्‍योरेंस का प्रीमियम, बच्‍चों की ट्यूशन फीस, होम लोन की ईएमआई में मूलधन का हिस्‍सा, इक्विटी लिंक्‍ड सेविंग स्‍कीम, टैक्‍स सेविंग फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट, PPF आदि सभी आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत ही आते हैं.

PPF में क्‍यों न करें निवेश?

चंडीगढ़ स्थित Goodmoneying के सेबी सर्टिफायड इन्‍वेस्‍टमेंट एडवाइजर और सर्टिफायड फाइनेंशियल प्‍लान मणिकरन सिंघल कहते हैं कि ऐसे लोग जिनकी बेसिक सैलरी ज्‍यादा होने के कारण EPF में ज्‍यादा पैसे जमा हो रहे हैं और उन्‍होंने धारा 80सी के तहत उपलब्‍ध विभिन्‍न विकल्‍पों में निवेश किया हुआ है, उन्‍हें सबसे पहले यह देखना चाहिए कि धारा 80सी के विभिन्‍न विकल्‍पों के तहत उन्‍होंने कुल कितना निवेश किया हुआ है. अगर यह 1.50 लाख रुपये की सीमा तक पहुंच चुका है तो उन्‍हें PPF में निवेश नहीं करना चाहिए.

PPF की जगह NPS का कर सकते हैं चयन

सिंघल कहते हैं कि भले ही किसी व्‍यक्ति ने धारा 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये का निवेश पूरा कर लिया हो लेकिन अगर व‍ह टैक्‍स में और बचत करना चाहता है तो उसे NPS का टियर 1 अकाउंट खुलवाना होगा. इनकम टैक्‍स में लाभ पाने के लिए वह अपने इस खाते में अधिकतम 50,000 रुपये का निवेश एक वित्‍त वर्ष में कर सकता है. इनकम टैक्‍स रिटर्न फाइल करते समय 50,000 रुपये के इस निवेश को 80CCD (1B) के तहत क्‍लेम करना होगा. इस प्रकार, कोई भी करदाता 1.50 लाख रुपये की जगह 2 लाख रुपये तक के डिडक्‍शन का लाभ प्राप्‍त कर सकता है.