अर्थशास्त्रियों के एक समूह ने रिजर्व बैंक (RBI) की चालू वित्त वर्ष की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की अपील की है. केंद्रीय बैंक नए वित्त वर्ष की पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा गुरुवार को पेश करेगा. पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री अरविंद विरमानी ने कहा कि यह आरबीआई को समझना है कि देश में फिलहाल वास्तविक ब्याज दर काफी ऊंची है.

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RBI अगर अर्थशास्त्रियों की यह मांग मान लेता है तो इससे बैंकों ग्राहकों के लोन पर खासा असर पड़ेगा. उदाहरण, इतना बदलाव संभव है:

लोन 25 लाख रुपए
टर्म 20 साल
ब्याज दर 8.5%
मौजूदा EMI 21696 रुपए/माह
रेपो रेट 0.25% घटा तो ब्‍याज दर 8.25%
तब EMI 21302 रुपए/माह
बचत 394 रुपए/माह

एसोचैम-ईग्रो फाउंडेशन द्वारा आरबीआई की मौद्रिक नीति पर आयोजित एक परिचर्चा में उन्होंने कहा, ‘‘मौद्रिक नीति में ढील का यह बहुत उपयुक्त समय है.’’ इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ डेवलपमेंट रिसर्च के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य असीमा गोयल व कोटक महिंद्रा बैंक की उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ अर्थशास्त्री उपासना भारद्वाज भी परिचर्चा में शामिल थी. इसके अलावा परिचर्चा में बैंक आफ अमेरिका मेरिल लिंच के मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील सेन गुप्ता, इंडियन एक्सप्रेस और सीएनएन-आईबीएन से जुड़े सुरजीत एस भल्ला भी मौजूद थे.

अधिकतर अर्थशास्त्रियों ने 4 अप्रैल को पेश होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती का सुझाव दिया. वहीं कुछ ने 0.50 प्रतिशत की कटौती का समर्थन किया. गोयल ने कहा कि निजी क्षेत्र के निवेश में कमी चिंताजनक है जबकि RBI द्वारा नीतिगत दर में कटौती का लाभ ग्राहकों को देने का भी मुद्दा है.

सेन गुप्ता ने कहा, ‘‘रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती को लेकर मेरा रुख सकारात्मक है. वहीं अगली मौद्रिक नीति समीक्षा में और 0.25 प्रतिशत की कटौती की संभावना है.’’ भल्ला ने कहा कि वृद्धि वास्तिवक समस्या है और ब्याज की वास्तविक दर अब भी ऊंची है.

एजेंसी इनपुट के साथ