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काम की खबर: सेविंग्‍स अकाउंट से कैसे अलग है सैलरी अकाउंट, क्‍या मिलते हैं फायदे

Salary vs  Savings Accounts: ऑर्गनाइज सेक्‍टर की लगभग हर कंपनी के कर्मचारी का सैलरी अकाउंट होता है. इसमें सरकारी या प्राइवेट सेक्‍टर के कर्मचारियों को हर महीने सैलरी आती है.
Updated on: May 14, 2021, 04.01 PM IST
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सैलरी अकाउंट: जरूरी नहीं न्यूनतम बैलैंस 

सैलरी अकाउंट में कंपनी अपने कर्मचारी की सैलरी ट्रांसफर करती है. जबकि सेविंग्‍स अकाउंट कोई व्‍यक्ति अपनी बचत को सुरक्षित रखने के इरादे से बैंक में खोलता है. कर्मचारी को यह सहूलियत होती है कि उसे सैलरी अकाउंट में मिनिमम  बैलेंस मेन्‍टेन करने की जरूरत नहीं होती है. दूसरी ओर, बैंक के सेविंग्स अकाउंट में खाताधारक को शहर के मुताबिक मिनिमम बैलेंस रखना जरूरी होता है. 

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सैलरी नहीं आने पर क्‍या होगा 

आमतौर पर कर्मचारी एक कंपनी से दूसरी कंपनी में जाते हैं. इसमें यह देखा जाता है कि दूसरी कंपनी में कर्मचारी का नया सैलरी अकाउंट खुल जाता है. इस स्थिति में अकसर यह सवाल उठता है कि पुराने सैलरी अकाउंट का क्‍या होगा. यह जान लीजिए कि अगर सैलरी अकाउंट में एक तय समय तक (अमूमन तीन महीना) के लिए सैलरी नहीं आती है, तो बैंक सैलरी अकाउंट को रेगुलर सेविंग्स अकाउंट में कन्‍वर्ट कर देता है. इसमें यह अब न्यूनतम बैलेंस रखने की जरूरत होती है. दूसरी तरफ, कर्मचारियों को यह भी सुविधा मिलती है कि बैंक सेविंग्स अकाउंट को सैलरी अकाउंट में कन्‍वर्ट कर सकता है.  इस तरह, अगर आपने अपनी नौकरी बदली है और अपना सैलरी अकाउंट बंद नहीं किया तो आपको सेविंग्‍स अकाउंट के नियमों के मुताबिक मिनिमम बैलेंस रखना होगा. इसी स्थिति में सैलरी अकाउंट बतौर सेविंग्‍स अकाउंट में एक्टिव रहेगा. ऐसा नहीं करने पर बैंक उस सेविंग्स अकाउंट पर मैनटेनेंस चार्ज या जुर्माना वसूल सकता है.

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दोनों अकाउंट पर कितना ब्‍याज 

आमतौर पर बैंक सैलरी और सेविंग्स अकाउंट एक समान ही ब्‍याज देते हैं. एसबीआई समेत कई बड़े बैंक सेविंग्‍स अकाउंट पर 3.50 फीसदी का ही सालाना ब्‍याज दे रहे हैं. वहीं, कुछ स्‍माल बैंक 7 फीसदी तक भी ब्‍याज बचत खाते पर ऑफर कर रहे हैं. यहां यह जान लें कि कंपनियों का सैलरी अकाउंट कॉमर्शियल बैंकों में ही होता है. ऐसे में उनको सैलरी अकाउंट पर उतना ही ब्‍याज मिलेगा, जितना वो बैंक अपने सेविंग्‍स अकाउंट पर दे रहा है.