NPS यानी नेशनल पेंशन सिस्‍टम भी अब टैक्‍सेशन के नजरिए से EPF और PPF जैसा हो गया है. अंतत: रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले पैसों को टैक्‍स-फ्री कर दिया गया है. प्रोविडेंट फंड (PF) स्‍कीम में जमा की जाने वाली रकम (1.5 लाख रुपये की सीमा तक) पर टैक्‍स की छूट है, रिटर्न भी टैक्‍स-फ्री है और विड्रॉल पर भी कोई टैक्‍स नहीं लगता. हालांकि, अभी तक NPS के मामले में रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले पूरे पैसे टैक्‍स-फ्री नहीं थे. रिटायरमेंट के बाद NPS से निकाली गई 40 फीसदी रकम से एन्‍युइटी खरीदना अनिवार्य था और यही राशि टैक्‍स-फ्री हुआ करती थी. बाकी के पैसों पर टैक्‍स लगता था. अब यह PPF की तरह ही छूट-छूट-छूट यानी EEE की श्रेणी में आ गया है.

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रिटायरमेंट के लिए म्‍युचुअल फंडों से क्‍यों बेहतर साबित हो सकता है NPS?

अब प्राइवेट नौकरी करने वाला व्‍यक्ति भी NPS में हाई-इक्विटी ऑप्‍शन चुनकर 60 साल की उम्र तक निवेश कर सकता है. रिटायरमेंट के समय मिलने वाले सभी पैसे टैक्‍स-फ्री होंगे, हालांकि, 40% रकम से एन्‍युइटी खरीदनी होगी. वैल्‍यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार के अनुसार, म्‍युचुअल फंड भी रिटायरमेंट के लिए पैसे जोड़ने का एक अच्‍छा जरिया हो सकता है लेकिन ऐसा लगता है कि जीरो टैक्‍स जैसी परिस्थिति में वास्‍तव में NPS एक बेहतर विकल्‍प साबित हो सकता है.

कुमार के अनुसार, म्‍युचुअल फंडों की तुलना में NPS का खर्च काफी कम है. लंबे समय में इस कम खर्च का फायदा चक्रवृद्धि के तौर पर निवेशकों को मिलता है. NPS के साथ EEE का लाभ जुड़ने के बाद यह रिटायरमेंट सेविंग के लिए म्‍युचुअल फंडों से कहीं बेहतर विकल्‍प साबित हो सकता है.

इसलिए भी बेहतर विकल्‍प साबित होगा NPS

कुमार कहते हैं कि रिटायरमेंट सेविंग के लिए हमेशा ही लंबा वक्‍त चाहिए होता है. इसके लिए नियम-कानून में स्थिरता जरूरी है. लंबी अवधि में NPS में नियामकीय स्थिरता अधिक रहेगी. इसकी बड़ी वजह यह है कि यह सरकारी कर्मचारियों से भी जुड़ा हुआ है. इसके अलावा, अगर भविष्‍य में इनमें कोई बदलाव भी होता है तो वह निवेशकों के हित में ही होगा. NPS का इतिहास भी यही कहता है. हालांकि, म्‍युचुअल फंडों और शेयरों में मामले में ऐसा नहीं है. हाल ही में इक्विटी म्‍युचुअल फंडों और शेयरों पर लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन टैक्‍स लगाया गया था.