जब कभी बात आती है टैक्स (Tax) बचाने की तो उसमें हाउस रेंट अलाउंस (House Rent Allowance) एक बड़ा रोल निभाता है. इसके तहत आपको काफी सारे पैसों पर टैक्स छूट मिलती है. हालांकि, एचआरए (HRA) एक ऐसा कंपोनेंट है, जिसका फायदा यूं ही नहीं मिलता, बल्कि उसके लिए एक पूरी कैल्कुलेशन (HRA Calculation) से गुजरना पड़ता है. कई लोगों को लगता है कि उनकी कंपनी जितना एचआरए उन्हें दे रही है, वह सारा टैक्स फ्री (Tax Free) है, लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है. आइए समझते हैं एचआरए का पूरा गणित (Tax Planning) और जानते हैं कितने रुपयों पर मिलती है टैक्स छूट.

इन 3 में से सबसे कम HRA मिलेगा

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जब आप एचआरए क्लेम कर रहे हों तो आपको 3 तरह के आंकड़े निकालने होते हैं. उनमें से जो भी आंकड़ा सबसे कम होता है, उस पर आपको टैक्स छूट मिलती है. 

1- जो एचआरए कंपनी की तरफ से सैलरी में दिया गया है, उसे क्लेम किया जा सकता है.

2- मेट्रो शहर में बेसिक सैलरी का 50 फीसदी और नॉन मेट्रो शहर में बेसिक सैलरी का 40 फीसदी तक एचआरए क्लेम कर सकते हैं.

3- आपके कुल रेंट में से बेसिक सैलरी का 10 फीसदी घटाने के बाद जो राशि बचती है, उतना एचआरए आप क्लेम कर सकते हैं.

एक उदाहरण से समझते हैं

मान लीजिए कि आपकी बेसिक सैलरी 3 लाख रुपये है और आप मेट्रो शहर में रहते हैं. साथ ही यह भी मान लेते हैं कि आपका हर महीने का घर का किराया 15 हजार रुपये है. वहीं आपके सैलरी स्ट्रक्चर में आपको कंपनी की तरफ से 1.6 लाख रुपये हाउस रेंट अलाउंस मिल रहा है. आइए जानते हैं ऐसी हालत में तीनों आंकड़े क्या-क्या आते हैं और आपको कितना फायदा मिल सकता है.

1- जो एचआरए कंपनी से मिला है यानी 1.60 लाख रुपये.

2- मेट्रो शहर में बेसिक सैलरी का 50 फीसदी यानी 3 लाख रुपये का 50 फीसदी, जो होता है 1.50 लाख रुपये. 

3- हर महीने 15 हजार रुपये रेंट का मतलब है कि आप साल में 1.80 लाख रुपये घर के किराए पर खर्च कर देते हैं. वहीं तीसरी स्थिति में कैल्कुलेशन करें तो आपके इस रेंट में से बेसिक सैलरी का 10 फीसदी घटाने के बाद जो रकम बचेगी, आप उसे एचआरए की तरह क्लेम कर सकते हैं. यानी 1.80 लाख- 30 हजार (बेसिक सैलरी का 10 फीसदी)= 1.50 लाख रुपये.

इस तरह भले ही आपको कंपनी की तरफ से 1.60 लाख रुपये का हाउस रेंट अलाउंस मिल रहा है, लेकिन आप 1.50 लाख रुपये तक ही एचआरए के तहत क्लेम कर सकते हैं. तो जब आप टैक्स प्लानिंग करें तो एचआरए के अमाउंट को उसी वक्त कैल्कुलेट कर लें, ना कि सैलरी स्ट्रक्चर वाले एचआरए के हिसाब से कैल्कुलेशन करें, क्योंकि 1 रुपये भी ज्यादा होने से कई बार लोग टैक्स के दायरे में आ जाते हैं.