मकान मालिकों को अक्सर लगता है कि किराएदारों के ज्यादा मजे हैं, जबकि किराएदारों को लगता है कि मकान मालिक बेवजह अपनी शर्तें उन पर थोपते हैं. किराएदार को प्रापर्टी टैक्स और मेंटीनेंस जैसे दूसरे खर्च से कोई मतलब नहीं होता है. आजकल दिल्ली-एनसीआर सहित देश के कई महानगरों में किराए में कमी की खबरें भी आ रही हैं. दूसरी ओर घर खरीदने पर ईएमआई का बोझ बढ़ जाता है. ऐसे में सवाल ये है कि अपना घर खरीदना जरूरी है या किराए पर रहना ज्यादा बेहतर विकल्प है.

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किराया बढ़ता जाता है, ईएमआई नहीं

अगर आप होम लोन लेकर घर खरीद रहे हैं, जो शुरुआती वर्षों में आपको काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि शुरुआत में किराए के मुकाबले होम लोन की ईएमआई बहुत अधिक होती है. लेकिन कुछ वर्षों बाद ईएमआई वही रहेगी, जबकि मकान का किराया काफी बढ़ जाएगा. इस दौरान आपकी सैलरी बढ़ चुकी होगी, ऐसे में आप आसानी से ईएमआई दे सकते हैं.

घर खरीदने से तैयार होता है एसेट

किराए पर आप चाहें जितने दिन भी रहें, वो मकान आपका नहीं होता है. इसलिए उसकी कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी का कोई फायदा आपको नहीं मिलता है. दूसरी ओर घर खरीदने पर उसकी कीमतों में होने वाली बढ़ोतरी का फायदा आपको मिलता है.

टैक्स छूट का लाभ

होम लोन पर आपको ब्याज पर टैक्स छूट का लाभ मिलता है, जबकि किराए पर ऐसा कोई लाभ नहीं मिलता. होम लोन लेकर घर खरीदने पर आयकर के मौजूदा नियमों के मुताबिक ईएमआई पर टैक्स छूट क्लेम की जा सकती है.

सबसे जरूरी हैं वित्तीय प्लानिंग

अगर आप घर खरीदने का फैसला करते हैं तो आपको डाउनपेमेंट के रूप में कुल कीमत का करीब 20% देना होगा. इसके अलावा स्टांप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन फीस और हर महीने बैंक की ईएमआई चुकानी होगी. अगर आपके पास इतना फंड है तो ही आप मकान खरीद सकते हैं. इसकी जगह मकान का किराया काफी कम होगा है. किराए पर रहकर जो अतिरिक्त राशि बचती है, उसे आप दूसरी जगह निवेश कर सकते हैं. इस तरह आप एक बड़ा फंड तैयार करके घर खरीद सकते हैं.

अपने घर का भावनात्मक पक्ष

घर खरीदने के फैसले का भावनात्मक पक्ष भी है. अपने घर से लगाव और उससे जुड़ी यादों की कोई कीमत नहीं हो सकती. इस बात को देखते हुए भी घर खरीदने का फैसले को सही कहा जा सकता है.