wheat flour price: गेहूं की महंगाई (wheat price) को लेकर सरकार की कोशिशों का असर दिखने लगा है. मंडियों में दो महीने पहले 3200 रुपए प्रति क्विंटल के ऊपर रिकॉर्ड स्तर पर बिकने वाले गेहूं का भाव 2500 रुपए के भी नीचे तक लुढ़क चुका है. इस तरह से करीब 30% की गिरावट आ चुकी है. हालांकि सरकार की इन कोशिशों के बावजूद आटा की कीमतों (wheat flour price in India) में अभी कोई खास राहत नहीं मिल सकी है. इस वजह से सरकार आटा (wheat flour price) को लेकर अब सख्त हो गई है.

आटे को लेकर सरकार सख्त

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आम आदमी का सीधा संबंध आटा से है, लेकिन गेहूं की कीमतों में आई गिरावट का खास असर अभी आटे की कीमतों (wheat flour price)पर नहीं दिख सका है.लिहाजा खाद्य मंत्रालय ने मिलों को आटा की कीमतों में कटौती करने का निर्देश दिया है. सरकार की कोशिशों से पिछले एक हफ्ते में आटे के थोक भाव में करीब 800 रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट दर्ज तो हुई है,लेकिन इस गिरावट के बावजूद रिटेल में आटा का भाव करीब 40 रुपए किलो के आसपास है. वहीं ITC जैसी कंपनियां अभी भी 45-55 रुपए प्रति किलो के भाव पैकेट बंद आटा बेच रही हैं. ऐसे में महंगाई पर काबू पाने की सरकार की मुहिम को तगड़ी चुनौती मिल रही है.

गेहूं-आटे पर स्टॉक लिमिट लगाने की चेतावनी

सरकार ने साफ कर दिया है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है. इसके तहत कीमतें अगर दोबारा बढ़ती हैं तो खाद्य मंत्रालय ने स्टॉक लिमिट लगाने पर भी विचार करने का संकेत दिया है. इससे पहले दो खेप में केंद्र सरकार बफर स्टॉर से रियायती दरों पर करीब 50 लाख टन गेहूं (wheat) खुले बाजार में जारी कर चुकी है. मंडियों में जब गेहूं का दाम (wheat price) 3000 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास था, तब सरकार ने ओपन मार्केट सेल्स स्कीम (OMSS) के तहत बेचे जाने वाले गेहूं का रिजर्व प्राइस 2350 रुपए प्रति क्विंटल तय किया था. इससे कीमतों में आई गिरावट के बाद पिछले हफ्ते सरकार ने रिजर्व प्राइस को 8.5% घटाकर 2150 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया. साथ ही इस भाव पर 20 लाख टन और गेहूं बाजार में जारी कर रही है गौर करने वाली बात ये है कि सरकार ने किसानों से इस गेहूं को 2015 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर खरीदा था.

क्यों महंगा हुआ गेहूं

भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा गेहूं( wheat) का उत्पादक देश है. दुनिया का करीब 12% गेहूं भारत में ही पैदा होता है. इसके बावजूद इस सीजन में इसकी कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर चली गईं. दरअसल ग्लोबल मार्केट में दाम बढ़ने से पिछले साल भारत से रिकॉर्ड 72 लाख टन गेहूं का एक्सपोर्ट हुआ. वहीं देश में गेहूं की सालाना खपत करीब 10.5 करोड़ टन का है, जबकि फसल खराब होने से उत्पादन 10 करोड़ टन से भी कम हुई थी. ऐसे में कीमतें MSP से ऊपर रहने से सरकारी खरीद में भारी कमी आई, लिहाजा 2022 में सरकार 188 लाख टन ही गेहूं (wheat price) खरीद सकी जो एक साल पहले के मुकाबले 53% कम थी. कम खरीद का असर गेहूं के बफर स्टॉक पर भी दिखा और इस साल 1 जनवरी को ये एक साल पहले के मुकाबले 48% गिरकर 175 लाख टन रहा

रूस-यूक्रेन युद्ध से गेहूं में तेजी की धारणा

रूस-यूक्रेन युद्ध से ग्लोबल मार्केट में गेहूं में तेजी को हवा मिली जिसका असर घरेलू बाजार पर भी पड़ा. भारत भले दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है, लेकिन यहां की ज्यादातर उपज घरेलू स्तर पर ही खप जाती है. वहीं रूस और यूक्रेन का ग्लोबल गेहूं उत्पादन में करीब 12% का योगदान है, जिसमें रूस अकेले दुनिया का करीब 8.5% गेहूं पैदा करता है लेकिन गेहूं के ग्लोबल एक्सपोर्ट में रूस पहले पायदान पर है. ऐसे में युद्ध और पश्चिमी देशों की आर्थिक पाबंदियों की वजह से रूस और यूक्रेन लंबे समय तक ग्लोबल मार्केट से बाहर हो गए जिससे दुनिया में गेहूं की कीमतें आसमान पर चली गईं. इसी का फायदा उठाने के लिए पिछले साल भारतीय एक्सपोर्टर्स ने जमकर गेहूं एक्सपोर्ट किया लेकिन घरेलू बाजार में बढ़ती कीमतों (wheat price)की वजह से सरकार को पिछले साल 13 मई को गेहूं के एक्सपोर्ट पर रोक लगानी पड़ी, जो अभी भी जारी है.

अप्रैल से गेहूं की कीमतों में कमी की उम्मीद

भारत में गेहूं का मार्केटिंग सीजन 1 अप्रैल से शुरू होता है. सरकार को इस साल 11.2 करोड़ टन गेहूं (wheat) की रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान है. ऐसे माना जा रहा है कि अप्रैल से इसकी कीमतों में कुछ और नरमी आ सकती है. हालांकि नए सीजन के लिए सरकार ने 2125 रुपए प्रति क्विंटल गेहूं का न्यूतम समर्थन मूल्य (MSP) तय किया है, जिसपर FCI की खरीद भी शुरू हो जाएगी ऐसे में इस साल भी गेहूं को MSP के नीचे आने की उम्मीद कम है. देशभर में लोगों को ज्यादा दाम पर गेहूं का आटा (wheat flour price) खरीदना पड़ रहा है.

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