वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट में जीरो बजट खेती का प्रस्ताव रखा है, जिससे करोड़ों किसानों को अपनी लागत में कमी लाने और टिकाऊ खेती करने में मदद मिलेगी. माना जा रहा है कि इस कदम से ग्रामीण संकट को बहुत हद तक कम करने में मदद मिलेगी. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि जीरो बजट फार्मिंग जैसे कदमों से 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी करने में मदद मिलेगी. इसके लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जाएगा. ऐसे में कई लोगों के मन में ये सवाल होगा कि आखिर जीरो बजट खेती है क्या.

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क्या है जीरो बजट खेती?

आजकल जीरो बजट खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. खासतौर से दक्षिण भारत में कृषि कोऑपरेटिव संस्थान इसके बेहद सफल प्रयोग कर रहे हैं. जीरो बजट खेती के तहत खेती के लिए जरूरी बीज, खाद-पानी आदि का इंतजाम प्राकृतिक रूप से ही किया जाता है. इसके लिए मेहनत जरूर अधिक लगती है, लेकिन खेती की लागत बहुत कम आती है और कीमत अधिक मिलती है.

चूंकि जीरो बजट खेती में लागत बहुत कम हो जाती है, इसलिए किसानों को फसल को उगाने के लिए कर्ज लेने की जरूरत नहीं होगी और वे कर्ज के जाल में नहीं पड़ेंगे. जीरो बजट खेती में जरूर इनपुट गांव-खेत से जुटाने के अलावा अतिरिक्त आय पाने के उपाए भी किए जाते हैं. जैसे एक साथ दो फसल लगाना और खेत की मेड़ पर पेड़ लगाना. इस तरह आय बढ़ाने और खर्च कम करने पर जोर दिया जाता है. आमतौर पर किसान रसायनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं, जो बहुत महंगी पड़ती है. सरकार को भी इन खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ सहना पड़ता है. देशी खाद तैयार करके इस खर्च को बचाया जा सकता है.

गांव में ही मौजूद गाय के गोबर, गौमूत्र, गुड़, मिट्टी और पानी की मदद से एक से दो सप्ताह में देशी खाद तैयार की जा सकती है. इस तरह नीम, गोबर, गौमूत्र और धतूरे जैसे फलों से देशी कीटनाशक तैयार किया जा सकता है. खेती में बैलों का इस्तेमाल बढ़ाकर डीजल की खपत को कम किया जा सकता है. इस तरह गोवंश संवर्धन का काम भी होगा और खेती की लागत में भी कमी आएगी.