No Confidence Motion यानी अविश्‍वास प्रस्‍ताव का जिक्र बीते कुछ दिनों में आपने कई बार सुना होगा. नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस सांसद गौरव गोगाई लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए हैं, जिस पर आज चर्चा होनी है और ये चर्चा अगले तीन दिनों तक चलेगी. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी इस पर चर्चा शुरू कर सकते हैं. ये चर्चा आज दोपहर 12 बजे से शुरू होगी, जो शाम 7 बजे तक चलेगी. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 अगस्‍त को इसका जवाब दे सकते हैं. ऐसे में तमाम लोगों के मन में ये सवाल होगा कि आखिर ये अविश्‍वास प्रस्‍ताव होता क्‍या है? आइए आपको बताते हैं-

क्‍या है अविश्‍वास प्रस्‍ताव

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भारत के संविधान में अविश्‍वास प्रस्‍ताव का कोई जिक्र नहीं किया गया है. लेकिन आर्टिकल-75 के अनुसार प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह होता है. चूंकि लोकसभा में जनप्रतिनिधि बैठते हैं, ऐसे में सरकार के पास सदन का विश्‍वास होना बहुत जरूरी है यानी कोई भी सरकार तभी सत्‍ता में रह सकती है, जब लोकसभा में उसके पास बहुमत हो. इसी को आधार बनाकर लोकसभा के रूल 198 में अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र किया गया है. अविश्‍वास प्रस्‍ताव एक तरीके से सरकार के पास सदन में बहुमत है या नहीं, इसे जांचने का तरीका है. 

कब लाया जाता है और क्‍या है प्रक्रिया

जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है, तो विपक्ष या कोई सांसद सरकार के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्‍ताव ला सकता है. लेकिन इसकी शर्त ये है कि प्रस्‍ताव पर 50 सांसदों का समर्थन होना चाहिए. अविश्‍वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा अध्यक्ष को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके बाद स्पीकर इसकी जांच करते हैं और स्‍वीकार करने के बाद सभी दलों के साथ बैठकर इसकी चर्चा की तारीख और समय निर्धारित करते हैं. 

अविश्‍वास प्रस्‍ताव के 10 दिनों के अंदर चर्चा जरूरी

नियम के अनुसार अविश्‍वास प्रस्‍ताव स्‍वीकार कर लेने के 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा करना जरूरी होता है. चर्चा के दौरान विपक्ष सरकार को अलग-अलग मुद्दों पर घेरने का प्रयास करते हैं. सरकार का मुखिया होने के नाते पीएम को विपक्ष के सवालों का जवाब देना होता है. चर्चा समाप्‍त होने के बाद वोटिंग कराई जाती है. वोटिंग के आधार पर ही ये तय होता है कि सरकार सत्‍ता में रहेगी या नहीं.

इससे पहले भी कई बार आ चुके हैं अविश्‍वास प्रस्‍ताव

भारत के इतिहास में अब तक 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए जा चुके हैं, हालांकि ज्‍यादातर ये असफल ही रहे हैं. पहला प्रस्‍ताव अगस्त 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में पेश किया गया था. इस प्रस्‍ताव को जेबी कृपलानी ने रखा था. उस समय इसके पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे और विरोध में 347 वोट पड़े थे. वहीं सबसे ज्‍यादा अविश्‍वास प्रस्‍ताव इंदिरा गांधी के खिलाफ लाए गए. उन्‍होंने 15 बार अविश्‍वास प्रस्‍ताव का सामना किया. 

मोरारजी देसाई के शासन काल में उनकी सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव रखे गए थे. पहली बार प्रस्ताव के दौरान दलों में आपसी मतभेद होने की वजह से प्रस्ताव पारित नहीं हो सका, वहीं दूसरी बार मोरारजी देसाई के पास बहुमत नहीं था, तो उन्होंने वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया. लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने भी तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया. 1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार को बचाने में कामयाब हुए थे.