Bengal election 2021: बंगाल चुनाव में सिंगूर एक ऐसा अखाड़ा है, जिसकी चर्चा 2021 के चुनाव में भी जोरोंशोर से हो रही है. किसान आंदोलन के जरिए टाटा को नेनो कार प्रोजेक्ट हटाने के लिए मजबूर कर भारतीय राजनीति के पटल पर लाए गए सिंगूर में अब 13 साल बाद औद्योगिकीकरण यानी इंडस्ट्री लगाना एक अहम मुख्य चुनावी मुद्दा बन गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस जमीन को लेकर इतना संघर्ष हुआ था वह अब बंजर पड़ी हुई है. नंदीग्राम के साथ सिंगूर वही जगह है जिसने 34 साल के वाम मोर्चे के शक्तिशाली शासन की नींव हिला दी थी और 2011 में ममता बनर्जी को सत्ता सौंप दी थी. 

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सिंगूर में चुनावी समर का नया खाका तैयार हो रहा है, जहां टीएमसी के मौजूदा विधायक एवं भूमि अधिग्रहण विरोधी प्रदर्शनों का मुख्य चेहरा रहे रबिंद्रनाथ भट्टाचार्य भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थाम चुके हैं. सत्तारूढ़ पार्टी ने भट्टाचार्य के पूर्व सहयोगी, बेचाराम मन्ना को इस सीट से उतारा है. टाटा प्रोजेक्ट के लिए शुरुआत में अधिग्रहीत जमीनों को जिन किसानों को वापस कर दिया गया था, वे अब अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकारी दान और छोटी-मोटी नौकरियों पर निर्भर हैं. इनमें से कई ठगा हुआ महसूस करते हैं क्योंकि टीएमसी सरकार उनकी बंजर जमीनों को खेती योग्य बनाने का वादा पूरा करने में विफल रही है.

विडंबना यह है कि, टीएमसी और बीजेपी दोनों ने ही स्थानीय लोगों के मूड को भांपते हुए इस चुनाव में सिंगूर में औद्योगीकरण का वादा किया है जहां ‘मास्टर मोशाई’ के नाम से लोकप्रिय 89 वर्षीय भट्टाचार्य और टीएमसी प्रत्याशी मन्ना इस मुद्दे पर इलाके में वाकयुद्ध कर रहे हैं. वहीं माकपा के युवा प्रत्याशी, श्रीजन भट्टाचार्य को उम्मीद है कि इस सीट से जीत उन्हीं की होगी, क्योंकि यहां उनकी पार्टी अपनी खोई हुई जमीन को पाने की भरसक कोशिश कर रही है.

ममता बनर्जी के सिंगूर आंदोलन के अगुआ रहे रबिंद्रनाथ भट्टाचार्य ने कहा, “हम कभी इंडस्ट्री के खिलाफ नहीं रहे, हम किसानों से जबरन जमीन लेने के खिलाफ थे. कुछ वजहों से चीजें नियंत्रण से बाहर थी. अगर भाजपा सत्ता में आती है, तो हम यहां निवेश लाएंगे.” 

निर्वाचन क्षेत्र में टीएमसी का झंडा बुलंद रखने की कोशिश में जुटे मन्ना का कहना है कि इस क्षेत्र के लिए कृषि आधारित उद्योग बेहतर होंगे. उन्होंने दावा किया, “कुछ कृषि आधारित उद्योग पहले ही सिंगूर आ चुके हैं. टीएमसी सरकार निकट भविष्य में इस क्षेत्र को कृषि उद्योगों के बड़े केंद्र में बदलने के लिए प्रयास कर रही है.” तेज तर्रार छात्र नेता, 28 वर्षीय सृजन ने भट्टाचार्य और मन्ना दोनों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि टीएमसी और बीजेपी वही दोहरा रही है जो 15 साल पहले लेफ्ट ने कहा था.

बंजर सिंगूर में कैसे बनेगा उपजाऊ?

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक भूमि में गाड़े गए कंक्रीट के खंभे और सीमेंट की सिल्लियों के कारण सिंगूर की जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए ऊपरी मिट्टी की कम से कम सात से आठ परत हटानी होगी. 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद यहां की जमीन को ठीक करने का काम पार्टी ने लिया लेकिन अब भी बड़ा हिस्सा बंजर पड़ा है जिससे यहां के लोग अब भी अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं.

सिंगूर में कब क्या हुआ?

  • एक वक्त कई फसलों की खेती के लिए प्रसिद्ध रहा सिंगूर तब सुर्खियों में आया था, जब टाटा मोटर्स ने 2006 में अपनी सबसे सस्ती कार के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट के लिए इस जगह को चुना था.
  • लेफ्ट की सरकार ने नेशनल हाइवे 2 के पास 997.11 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर कंपनी को सौंपा था. उस समय विपक्ष की नेता और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अपनी अगुवाई में 26 दिन की भूख हड़ताल कर वह 347 एकड़ जमीन लौटाने को कहा था जो स्पष्ट तौर पर जबरन ली गई थी. इलाके में मजबूत जनाधार वाली टीएमसी ने इस अधिग्रहण के लिए जन आंदोलन चलाया था. 
  • टीएमसी और वाम सरकार के बीच कई बैठकों के बाद भी समाधान न निकलने पर टाटा (परियोजना) अंतत: सिंगूर से चली गई और अपना प्लांट गुजरात के सानंद में बनाया. प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित की गई भूमि 2016 में वहां के लोगों को लौटा दी गई. हालांकि, ममता बनर्जी सरकार बंजर पड़ी भूमि को उपजाऊ बनाने में विफल रही क्योंकि इसमें बहुत खर्च आएगा और कई किसान अपनी जमीन बेच चुके हैं.

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