2 अक्टूबर को पूरा देश महात्मा गांधीजी की 150वीं जयंती (Gandhi Jayanti) मना रहा है. इस दिन को स्वच्छता के लिए भी जाना जाता है. क्योंकि आज से 5 साल पहले आज ही के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की और देश को खुले में शौच मुक्त करने का अभियान चलाया था. चूंकि खुद गांधीजी स्वच्छता के सिपाही थे. इसलिए गांधी जयंती को स्वच्छता दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है. 

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हालांकि, पीएम मोदी और महात्मा गांधी से पहले भी एक शख्सियत ने साफ-सफाई को लेकर झंडा बुलंद किया था. लेकिन अब उनका नाम ज्यादातर लोग भूल चुके हैं. मध्यकालीन भारत के संत गाडगे (Gadge Maharaj) ने स्वच्छता को लेकर आवाज बुलंद की थी. उन्हें बाबा गाडगे के नाम भी लोग जानते हैं. संत गाडगे (Sant Gadge Maharaj) का अनुसरण करने वाली संस्था अंतरराष्ट्रीय सहयोग संगठन ने आज गांधी जयंती पर स्वच्छता अभियान शुरू करते हुए संत गाडगे को सम्मान देने की मांग उठाई है. 

अंतरराष्ट्रीय सहयोग संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय रजक के मुताबिक, भारत में सबसे पहले संत गाडगे ने ही साफ-सफाई को लेकर लोगों को जागरुक किया और इसके फायदों के बारे में बताया. अजय रजक ने बताया कि उनकी संस्था ने भारत सरकार को एक ज्ञापन भेजा है जिसमें उन्होंने स्वच्छता मिशन से संत गाडगे का नाम जोड़ने की अपील की है. 

अजय बताते हैं कि बाबा गाडगे देशभर में भ्रमण करके लोगों को साफ-सफाई के लिए जागरुक किया करते थे और खुद ही उस इलाके की साफ-सफाई करते थे. उन्होंने लोगों को बताया कि बिना किसी सरकारी मदद के आसपास के माहौल को कैसे स्वच्छ रखा जाए. 

महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra) संत गाडगे के नाम पर हर साल स्वच्छता अवार्ड प्रदान करती है. महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) ने 2000-01 में संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान (Sant Gadge Gram Swachata Abhiyan) भी शुरू किया था. इस अभियान में स्वच्छ गांव को सम्मानित किया जाता है. अमरावती यूनिवर्सिटी का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है. भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था. साथ ही भारत सरकार ने उनके सम्मान में स्वच्छता और जल के लिए एक राष्ट्रीय पुरस्कार भी शुरू किया है.

बाबा गाडगे (Sant Gadge Baba) का जन्म 23 फरवरी, 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था. उन्होंने धार्मिक और सामाजिक सुधार के लिए बहुत काम किए. वह संपन्न होने के बाद भी एक निर्धन की तरह अपना जीवन-यापन करते थे और सामाजिक न्याय (social reformer) को बढ़ावा देने के लिए गांव-गांव घूमते रहते थे. उनका मुख्य जोर स्वच्छता को लेकर था.