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National Sports Day: जानिए कैसे 'हॉकी के जादूगर' बने मेजर ध्यानचंद, हिटलर के ऑफर को ठुकरा कर दिखाया था देश-प्रेम

हर साल 29 अगस्त हमारे देश में खेल दिवस (National Sports Day) के रूप में मनाया जाता है. हॉकी (Hockey) के जादूगर मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) के जन्मदिन के अवसर पर सालों से ऐसा किया जाता रहा है. आइए आज हम भारतीय हॉकी के हीरो मेजर ध्यानचंद की जयंती पर उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से को जानने का प्रयास करते हैं. वैसे तो मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) की जिंदगी में कई ऐसी घटनाएं हैं जिन पर काफी कुछ लिखा जा सकता है. लेकिन आज हम आपको उनके जीवन के कुछ ऐसे किस्सों से रूबरू कराने जा रहे हैं जिनकी वजह से वह भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हॉकी (Hockey) के जादूगर कहलाए जाते हैं. (फोटो सोर्स- ट्विटर)
Updated on: August 29, 2021, 01.44 PM IST
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हॉकी नहीं ध्यानचंद बचपन में इस खेल को करते थे पसंद

29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में जन्मे मेजर ध्यानचंद की रुची हॉकी में नहीं थी. वह बचपन में कुश्ती पसंद किया करते थे. कुश्ती में ही उन्होंने आगे तक का सफर तय करने का मन बना रखा था. लेकिन मेजर ध्यानचंद के पिता हॉकी के एक अच्छे खिलाड़ी थे. महज 16 साल की उम्र में जब मेजर ध्यानचंद को सेना में भर्ती होने का मौका मिला तो इसके बाद उनका रुझान हॉकी की तरफ बढ़ने लगा. 16 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार हॉकी का स्टीक अपने हाथ में लिया और उसके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. (फोटो सोर्स- ट्विटर)

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भारतीय सेना में आकर बदली ध्यानचंद की किस्मत

भारतीय सेना में भर्ती होने के साथ ही मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) के जीवन में कई तरह के बदलाव आए. हॉकी को लेकर मेजर ध्यानचंद का प्रेम इतना बढ़ गया था कि वह रात को इसकी प्रैक्टिस किया करते थे. दिन में सेना में काम करने के दौरान उनके पास हॉकी खेलने का समय नहीं होता था. लेकिन रात को अंधेरा होने के कारण वह प्रैक्टिस नहीं कर पाते थे. लेकिन जब चांदनी रात होती थी तो वह रात भर प्रैक्टिस किया करते थे, इसलिए वह अक्सर चांदनी रात का इंतजार किया करते थे. (फोटो सोर्स- ट्विटर)

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फील्ड में नंगे पांव उतर जर्मनी की टीम को दी थी पटखनी

14 अगस्त 1936 को जर्मनी के ख़िलाफ फ़ाइनल मैच में मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) ने अपने प्रदर्शन से सभी का दिल जीत लिया. 14 अगस्त को बारिश होने के कारण इस मैच को 15 अगस्त को आयोजित कराया गया. शुरुआती कुछ समय में जर्मनी एक गोल कर चुकी थी. मैदान गीला होने के कारण भारतीय खिलाड़ियों को जूता पहनकर भागने में परेशानी हो रही थी. इसके बाद मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) ने जूता उतारकर नंगे पांव खेलना शुरू किया और एक के बाद एक तीन गोल कर दिए. नतीजा यह रहा कि भारत ने इस मैच को 7-1 से अपने नाम किया. (फोटो सोर्स- ट्विटर)

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मेजर ध्यानचंद ने हिटलर के ऑफर को दिया था ठुकरा

बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में 40,000 लोग फ़ाइनल मैच देखने पहुंचे थे. उनमे से एक हिटलर भी थे, टीम की शर्मनाक हार को देखते हुए वह बीच मैच को छोड़कर ही वहां से चले गए. अगले दिन जर्मनी के अखबारों में मेजर ध्यानचंद की जमकर तारीफ हुई. हिटलर ने इसके बाद भारतीय खिलाड़ियों को खाने पर आमंत्रित किया. इस दौरान ध्यानचंद को हिटलर ने जर्मनी में फील्ड मार्शल बनने का ऑफर दिया. जिसे ध्यानचंद ने बड़े ही आदर के साथ मना कर दिया और भारत के लिए खेलते रहने का निर्णय लिया. जर्मनी की जमीन पर हुई ओलिंपिक खेलों के फाइनल में भारत की यह जीत कई मायनों में यादगार थी. (फोटो सोर्स- ट्विटर)

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मेजर ध्यानचंद पर बन रही है डॉक्यूमेंटरी

मेजर ध्यानचंद की 116वीं जयंती से पहले हॉकी के दिग्गज खिलाड़ी पर बन रही डॉक्यूमेंटरी का पहला पोस्टर जारी किया गया. ध्यानचंद को भारत रत्न से नवाजे जाने की मांग को लेकर डिजिटल अभियान का हिस्सा निर्माता और उद्यमी जोयता रॉय और प्रतीक कुमार इस डॉक्यूमेंटरी को बना रहे हैं. इसमें हॉकी के जादूगर के शुरुआती जीवन और संघर्ष की कहानी है. दोनों ने ‘मेजर ध्यानचंद’ डॉक्यूमेंटरी का पहला पोस्टर जारी किया. इसमें महान खिलाड़ी को हॉकी स्टेडियम की तरफ देखते हुए और रेलवे पटरी पर खाली पैर हॉकी का अभ्यास करते हुए दिखाया गया है.(फोटो सोर्स- ट्विटर)