National Family Health Survey data: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने बदलते भारत की तस्वीर पेश की है. लेकिन इसमें भारत और इंडिया में अब भी फर्क साफ तौर पर दिखता है. देश में लैंडलाइन लाइन की जगह अब मोबाइल फोन ले चुके हैं. स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की स्पीड जितनी तेजी से बढ़ी, उतनी ही तेजी से लैंडलाइन भी गायब हो गया. 2005 आते-आते भारत में सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों के पास लैंडलाइन फोन रह गया था. आज देश में सिर्फ 2 प्रतिशत लोग लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करते हैं. 2005 की बात करें तो 10 में से सिर्फ 2 भारतीयों के पास मोबाइल फोन होता था. लेकिन आज भारत में 75 करोड़ लोगों के पास कम से कम एक स्मार्टफोन है. यानी हर 10 में से 6 लोगों के पास एक स्मार्टफोन है. 

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मोबाइल के इस्तेमाल में फर्क

अगर बेसिक फोन को मिला लें तो भारत में 95% लोगों के पास फोन है. डेलॉइट कंपनी के अनुमान के मुताबिक, 2026 तक भारत में 100 करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन होगा. लेकिन भारत और इंडिया का फर्क आप मोबाइल फोन यूजर्स के आंकड़ों से ही समझ जाएंगे. 2005 में भारत में 36 प्रतिशत शहरी लोगों के पास मोबाइल फोन था जबकि गांव के महज 7 प्रतिशत लोगों के पास इसकी सुविधा थी. 2015 में 96 प्रतिशत शहरी लोग मोबाइल फोन यूजर्स हो गए तो गांवों में भी 87 प्रतिशत लोगों के पास मोबाइल फोन पहुंच गया. साल 2021 में शहरों में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या से ज्यादा बदलाव गांवों में आया. 2021 में शहरों में 96.7 % और गांवों में 91.5% लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं.  

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स्मार्टफोन से कंप्यूटर की बिक्री पर असर

स्मार्टफोन ने कंप्यूटर की बिक्री पर भी असर डाला है. आज पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन से लेकर एक्सेल शीट तक लगभग सभी काम आपका स्मार्टफोन कर सकता है. देश में 2005 में  शहरों में 8% लोग कंप्यूटर यूजर्स थे जबकि गांवों में सिर्फ 0.6 प्रतिशत लोग इसका इस्तेमाल कर रहे थे. पिछले साल तक शहरों में कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों की संख्या 19.5% तक ही पहुंची. जबकि ग्रामीण इलाकों में आज भी केवल 4.4% लोग ही इसपर काम कर रहे हैं. यानी 15 साल में कंप्यूटर यूज करने वालों की संख्या केवल 9% ही बढ़ी हैं.  

पंखों, एसी और कूलर की सुविधा

तेज गर्मी ने पंखों की सेल बढ़ाई है, लेकिन एसी और कूलर जैसी चीजे अभी भी गांवों के बहुत सारे लोगों की पहुंच से बाहर है. 2005 में गांव में 38% परिवारों के पास पंखे की सुविधा थी जबकि शहरों में तकरीबन 85% घरों में पंखा होता था. 2021 की बात करें तो शहरों में 96% परिवारों के पास पंखा है. वहीं गांवों में 84% परिवारों के पास पंखा है. कुल मिलाकर अब 89 प्रतिशत घरों में पंखे की सुविधा मौजूद है. लेकिन एसी और कूलर के मामले में ऐसा नहीं है. 2015 में 33% शहरी परिवारों के पास एसी या कूलर आ चुके थे. जबकि 2015 तक गांव के केवल 10% घर ऐसे थे जहां एसी या कूलर की सुविधा मौजूद थी. 2021 तक भारत के 40% शहरी परिवारों के पास एसी पहुंच चुका है. लेकिन गांव में अभी भी 16% से भी कम घर ऐसे हैं जहां एसी या कूलर लगे हैं.  

 

फ्रिज और वाशिंग मशीन का डाटा

इसी तरह फ्रिज और वाशिंग मशीन अभी गांवों के बहुत सारे परिवारों के लिए सपना ही है. यहां के 1 चौथाई से कम परिवारों के पास ही इसकी सुविधाएं मौजूद हैं. 2005 में शहरों में 34% के पास फ्रिज था लेकिन गांव में 6% लोगों के पास ही फ्रिज था. 2021 आते आते यानी 15 वर्षों में ये तस्वीर बदली तो है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं. अब शहरों में 64% लोगों के पास फ्रिज है, जबकि गांव में अभी भी केवल 25 प्रतिशत लोगों के पास ही यह मौजूद है. यानी केवल एक चौथाई लोगों के पास ही फ्रिज है. वहीं देश में शहरों में 36% और गांव में केवल 9% लोगों के पास ही वाशिंग मशीन है.  

 

गांवों से सिर्फ इतने लोगों के पास गाड़ी 

दिल्ली में देश की सबसे ज्यादा गाड़ियां हैं, लेकिन दिल्ली और पूरे भारत का हाल बिल्कुल अलग है. आधा भारत अभी भी दोपहिए की सवारी करता है. 2005 में 30.05% लोगों के पास शहरों में स्कूटर या कोई और टू व्हीलर होता था. वहीं गांवों में केवल 10% लोग थे जिनके पास दोपहिया वाहन थे. लेकिन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के लेटेस्ट डाटा के मुताबिक, शहरों में 60% और गावों में 44% लोगों के पास टू व्हीलर यानी स्कूटर या बाइक या स्कूटी जैसा कोई वाहन मौजूद है.  

जबकि शहरों में 60% और गावों में 44% लोगों के पास टू व्हीलर यानी स्कूटर, बाइक या स्कूटी जैसा कोई वाहन मौजूद है. 2005 में केवल 6% लोगों के पास शहरों में कार होती थी और गांव में केवल 1% परिवार ही कार की सवारी करते थे. लेकिन यह तस्वीर थोड़ी बदल गई है. 2021 के डाटा के मुताबिक शहरों में 14% से भी कम परिवारों के पास कार है. वहीं गांव में सिर्फ 4.4% परिवारों को पाल ही इसकी सुविधा मौजूद है.