चंद्रयान-2 के साथ भारत एक नया इतिहास रचने जा रहा है. चंद्रमा की सतह के लिए भारत का पहला मिशन चंद्रयान-2 15 जुलाई को लॉन्च किया जाएगा, जिसके 6 सितंबर को वहां पहुंचने की उम्मीद है. ये यान चंद्रमा के उस हिस्से पर लैंड करेगा, जिसे आज तक दुनिया के किसी भी देश ने एक्सप्लोर नहीं किया है. इस अभियान के तहत भारत के 13 वैज्ञानिक उपकरण चंद्रमा के बारे में अध्ययन करेंगे और ये नासा का एक लेजर उपकरण ले जाएगा. इसके लिए नासा से कोई पैसा नहीं लिया जाएगा. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन के अंतरिक्ष यान ही चंद्रमा की सतह पर उतर पाए हैं. 

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चंद्रयान-2 अभियान की कुल लागत 1000 करोड़ रुपये है. इस अभियान में कक्षित्र, लैंडर (विक्रम) एवं रोवर (प्रज्ञान) नाम के तीन माड्यूल हैं. लैंडर और रोवर में तिरंगा और रोवर के व्हील में अशोक चक्र अंकित है.

हम चांद पर क्यों जा रहे हैं?

इसरो की वेबसाइट पर दी जानकारी के मुताबिक, 'चंद्रमा पृथ्‍वी का नजदीकी उपग्रह है जिसके माध्यम से अंतरिक्ष में खोज के प्रयास किए जा सकते हैं और इससे संबंधित आंकड़े भी जमा किए जा सकते हैं. यह गहन अंतरिक्ष मिशन के लिए जरूरी टेक्‍नोलॉजी आजमाने का परीक्षण केन्‍द्र भी होगा.' चंद्रयान 2 खोज के एक नए युग को बढ़ावा देने, अंतरिक्ष के प्रति हमारी समझ बढ़ाने, प्रौद्योगिकी की प्रगति को बढ़ावा देने, वैश्विक तालमेल को आगे बढ़ाने और खोजकर्ताओं तथा वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ी को प्रेरित करने में भी सहायक होगा. 

क्या आप अज्ञात के लिए तैयार हैं?

चंद्रयान 2 भारतीय चंद्र मिशन है जो पूरी हिम्‍मत से चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है. इसका मकसद, चंद्रमा के प्रति जानकारी जुटाना और ऐसी खोज करना जिनसे भारत के साथ ही पूरी मानवता को फायदा होगा. इन परीक्षणों और अनुभवों के आधार पर ही भावी चंद्र अभियानों की तैयारी में जरूरी बड़े बदलाव लाए जाएंगे, ताकि आने वाले दौर के चंद्र अभियानों में अपनाई जाने वाली नई टेक्‍नॉलोजी तय करने में मदद मिले.

चंद्रयान 2 के वैज्ञानिक उद्देश्य क्या हैं? 

इसरो की वेबसाइट के मुताबिक चंद्रमा हमें पृथ्वी के क्रमिक विकास और सौर मंडल के पर्यावरण की महत्वपूर्ण जानकारियां दे सकता है. वैसे तो कुछ परिपक्व मॉडल मौजूद हैं, लेकिन चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में और अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता है. चंद्रमा की सतह को व्यापक बनाकर इसकी संरचना में बदलाव का अध्ययन करने में मदद मिलेगी. चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में भी कई महत्वपूर्ण सूचनाएं जुटाई जा सकेंगी. वहां पानी होने के सबूत तो चंद्रयान 1 ने खोज लिए थे. अब यह पता लगाया जा सकेगा कि चांद की सतह और उपसतह के कितने भाग में पानी है. 

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से दिलचस्प है क्योंकि इसकी सतह का बड़ा हिस्सा उत्तरी ध्रुव की तुलना में अधिक छाया में रहता है. इसके चारों ओर स्थायी रूप से छाया में रहने वाले इन क्षेत्रों में पानी होने की संभावना है. चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में प्रारंभिक सौर प्रणाली के लुप्‍त जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है.

चंद्रयान 2 की विशेषताएं:

1. पहला अंतरिक्ष मिशन जो चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर सफलतापूर्वक लैंडिंग का संचालन करेगा.

2. पहला भारतीय अभियान, जो स्वदेशी तकनीक से चंद्रमा की सतह पर उतरा जाएगा.

3. पहला भारतीय अभियान जो देश में विकसित प्रौद्योगिकी के साथ चाँद की सतह के बारे में जानकारियां जुटाएगा.

4. चंद्रमा की सतह पर रॉकेट उतारने वाला चौथा देश.

लांचर - GSLV Mk-III भारत का अब तक का सबसे शक्तिशाली लॉन्चर है, और इसे पूरी तरह से देश में ही निर्मित किया गया है.

ऑर्बिटर - ऑर्बिटर, चंद्रमा की सतह का निरीक्षण करेगा और पृथ्वी तथा चंद्रयान 2 के लैंडर - विक्रम के बीच संकेत रिले करेगा.

विक्रम लैंडर - लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर भारत की पहली सफल लैंडिंग के लिए डिज़ाइन किया गया है. 

प्रज्ञान रोवर - रोवर ए आई-संचालित 6-पहिया वाहन है, इसका नाम ''प्रज्ञान'' है, जो संस्कृत के ज्ञान शब्द से लिया गया है.

मिशन की समयसीमा

लॉन्च विंडो - 9 जुलाई 2019 से 16 जुलाई 2019 तक.

चंद्रमा पर उतरना - 6 सितंबर, 2019.

चंद्रमा पर होने वाले वैज्ञानिक प्रयोग - 1 चंद्र दिवस (14 पृथ्वी दिवस).

कक्षा में प्रयोग - 1 वर्ष तक कार्यरत.