आईएनएस सागरध्‍वनि, को समुद्री और उससे जुड़े अन्य पहलुओं पर प्रशिक्षण व अनुसंधान की पहल (एमएआईटीआरआई, मैत्री)’  के लिए कोच्चि से रवाना किया गया. आईएनएस सागरध्‍वनि नौसेना भौतिक और समुद्री प्रयोगशाला (एनपीओएल), कोच्चि का अनुसंधान पोत (एमएआरएस) है. इसका संचालन भारतीय नौसेना करती है. सागरध्‍वनि को वाईस एडमिरल ए.के.चावला, एवीएसएम, एनएम, वीएसएम, दक्षिणी नौसेना कमान के फ्लैग ऑफिसर तथा रक्षा अनुसंधान व विकास विभाग के सचिव एवं रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के चेयरमैन डॉ.जी.सतीश रेड्डी ने संयुक्‍त रूप से नौसेना बेस, कोच्चि से झंडी दिखाकर रवाना किया.

देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने पर होगा काम
इस पोत के मिशन की परिकल्‍पना डीआरडीओ ने तैयार की थी जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ (एसएजीएआर, सागर) के अनुरूप है. इस विजन के तहत हिन्‍द महासागर क्षेत्र के सभी देशों के बीच सामाजिक-आर्थिक सहयोग तथा जल के अंदर की ध्‍वनि में समुद्री अनुसंधान का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है. भारतीय नौसेना और एनपीओएल का यह मिशन दक्षिण-पूर्वी ऐशियाई देशों के साथ संबंधों को मजबूत करेगा और अनुसंधान को बेहतर बनाएगा. इसलिए इस मिशन का नाम सागर मैत्री रखा गया है. सागर मैत्री मिशन का मुख्‍य उद्देश्‍य है अंडमान समुद्र और समीपवर्ती समुद्री क्षेत्र समेत संपूर्ण उत्‍तरी हिन्‍द महासागर में आकड़ों का संग्रह तथा समुद्र अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में सभी हिन्‍द महासागर क्षेत्र के 8 देशों के साथ लम्बे समय में बेहतर संबंध बनाना है.  
 
स्वदेशी तकनीक से बनाया गया है आईएनएस सागरध्‍वनि
आईएनएस सागरध्‍वनि का निर्माण स्‍वदेशी तकनीक से जीआरएसई लिमिटेड, कोलकाता ने किया है. इसे 30 जुलाई, 1994 को कमिशन किया गया था. पिछले 25 वर्षों में पोत ने समुद्र में बड़े पैमाने पर अनुसंधान कार्य किए हैं. पोत 30, जुलाई, 2019 को अपनी रजत जयंती मनाएगा. सागर मैत्री ट्रैक-2 के तहत सागरध्‍वनि थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर की यात्रा करेगी और इन देशों के चयनित संस्‍थानों के सहयोगी अनुसंधान कार्यक्रमों में हिस्‍सा लेगी. सागर मैत्री मिशन ट्रैक-1 का आयोजन अप्रैल, 2019 में यांगून, म्‍यांमार में किया गया था.
 
इन क्षेत्रों पर चल रहा है काम
भारतीय नौसना और एनपीओएल सोनार प्रणाली, पानी के अंदर निगरानी प्रौद्योगिकी तथा समुद्री पर्यावरण व समुद्री सामग्री पर संयुक्‍त रूप से अनुसंधान तथा विकास का कार्य कर रहे हैं.