कोरोना में मारे गए अधिकांश लोगों की मौत देर से लक्ष्णों को समझने या टेस्ट कराना रहा है. इससे मरीज की हालत गंभीर होने और अंत में हालात हाथ से निकलने की नौबत तक आना रहा है. हालत अब भी उससे ज्यादा सुधरी नहीं है. लेकिन एक उम्मीद की रोशनी IIT Bombay से निकलती दिख रही है. ये उम्मीद की रोशनी है इंफ्रा रेड लाइट की. जी हां! IIT Bombay ने एक ऐसी तकनीक को खोजा है जिसमें इंफ्रारेड किरणें ये बताने में मदद करेंगी कि किस कोरोना मरीज पर गंभीर स्थिति में पहुंचने की ज्यादा संभावना है.  

विभाग ने की पुष्टि

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दरअसल IIT Bombay ने यह पता लगाने के लिए इंफ्रा-रेड तकनीक का इस्तेमाल करके एक नई विधि विकसित की है कि किन रोगियों को COVID-19 से गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा है. प्रोटियोमिक्स फैसिलिटी विभाग प्रमुख, प्रोफेसर संजीव श्रीवास्तव ने पुष्टि की है कि किसी व्यक्ति के ब्लड केमिकल सिग्नेचर और COVID-19 के साथ गंभीर रूप से बीमार होने के बीच एक संबंध है.

Zee Business Hindi Live यहां देखें

परीक्षण 85% सटीक

एक आधिकारिक बयान के अनुसार, मुंबई के कस्तूरबा अस्पताल, ऑस्ट्रेलिया के QIMR बर्घोफर मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और एगिलेंट टेक्नोलॉजीज के सहयोग से किया गया पायलट अध्ययन 85 प्रतिशत सटीक पाया गया.

कस्तूरबा अस्पताल के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. जयंती शास्त्री ने कहा है कि इस तरह का ब्लड बेस्ड टेस्ट भारत में कोविड-19 मरीजों की गंभीरता को पता लगाने में डॉक्टरों के लिए फायदेमंद होगा.

बड़े अध्ययन की जरूरत

इस रिसर्च से जुड़े एसोसिएट प्रोफेसर मिशेल हिल बताते हैं कि कि मुंबई में 128 COVID-19 रोगियों पर पायलट किया गया था. गंभीर रूप से बीमार होने वाले मरीजों में इन्फ्रा-रेड स्पेक्ट्रा में औसत दर्जे का अंतर था. जबकि मधुमेह कई मरीजों में एक पूर्वसूचक पाया गया. वे कहते हैं कि इस पद्धति को ठीक करने के लिए एक बड़े अध्ययन की जरूरत है. ग्रुप को उम्मीद है कि यह जल्द और किफायती टेस्ट मरीजों को ट्राइएजिंग करने में मदद करेगा, खास तौर से उन अस्पतालों में जहां COVID-19 मरीजों की तादाद ज्यादा होती है.

इस अध्ययन को मुख्य रूप से भारत के विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था.