भारत विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के "स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट, 2023" के डेटा का अनुमान है कि भारत में एक साल में डेढ़ फीसदी से ज्यादा जनसंख्या बढ़ी है, जबकि अब चीन दूसरे नंबर पर है. चीन की कुल आबादी 142 करोड़ 57 लाख है. जनसंख्या विस्फोट वाले इन दो देशों के बाद जो देश तीसरे नंबर पर आता है वो है यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका है जिसकी जनसंख्या अब 34 करोड़ है.  

तीनों देशों से जुड़े अहम आंकड़े 

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1. भारत – जनसंख्या - 142 करोड़ 86 लाख 

क्षेत्रफल - 32 लाख 87 हज़ार 590 स्कवेयर किलोमीटर 

कुल जमीन  - 29 लाख 73 हज़ार 190 स्कवेयर किलोमीटर 

 

2. चीन – जनसंख्या - 142 करोड़ 57 लाख 

क्षेत्रफल – 97 लाख 6 हज़ार 961 स्कवेयर किलोमीटर  

कुल जमीन 93 लाख 88 हज़ार 211 स्कवेयर किलोमीटर 

 

3. USA - जनसंख्या - 34 करोड़  

क्षेत्रफल - 93 लाख 72 हज़ार 610 स्क्वेयर किलोमीटर  

कुल जमीन - 91 लाख 47 हज़ार 420 स्क्वेयर किलोमीटर  

भारत और चीन का अंतर समझिए- क्या कहते हैं यूएन के आंकड़े?

  • भारत के पास पूरी दुनिया की जमीन का 2% हिस्सा है. चीन के पास 6.3% हिस्सा है.  
  • जबकि दुनिया की कुल आबादी के 18% लोग भारत में रहते हैं और लगभग 18% लोग चीन में रहते हैं. 
  • भारत में महिलाओं की औसत उम्र 74 वर्ष और पुरुषों की 71 वर्ष है. चीन में पुरुष औसतन 76 वर्ष और महिलाएं 82 वर्ष तक जीती हैं. 
  • महिलाओं का फर्टिलिटी रेट यानी बच्चे पैदा करने की क्षमता प्रति महिला पर 2 है. चीन का औसत 1.2 है. विश्व का औसत 2.1 है.  
  • भारत में 15 से 64 वर्ष के 68 प्रतिशत लोग हैं. यानी मोटे तौर पर भारत युवाओं का देश है. भारत में 15 से 24 साल के 25 करोड़ 40 लाख युवा हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा युवा शक्ति भारत के पास है.  
  • चीन में 65 वर्ष से ज्यादा के 14 प्रतिशत लोग हैं लेकिन भारत में 65 वर्ष से ज्यादा लोगों का प्रतिशत 7 है. चीन धीरे धीरे बूढ़ों का देश बन रहा है.  

युवाओं के देश भारत को बेहतर प्लानिंग की जरूरत

भारत ने 1952 में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर फैमिली प्लानिंग प्रोग्राम की शुरुआत की. जबकि चीन में 1959 में पहली बार फैमिली प्लानिंग की शुरुआत की गई. भारत में जनसंख्या की रफ्तार पर लगाम तो लगी लेकिन बहुत ज्यादा नहीं. चीन में 2022 में पहली बार आबादी बढ़ने के बजाय कम हो गई. हालांकि यूएन के मुताबिक बढ़ती जनसंख्या का मतलब विकास से लगाना चाहिए, सबसे ज्यादा युवाओं वाले देश की असीमित संभावनाओं से लगाना चाहिए और इसे demographic dividend यानी जनसंख्या लाभांश में बदलना चाहिए.  

यूएन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की कहानी काफी पावरफुल है. इसने शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, आर्थिक विकास के साथ-साथ तकनीक में प्रगति की है. लेकिन भारत को अपनी युवा शक्ति का फायदा उठाने के लिए नौकरियों और काम के अवसर बढ़ाने होंगे. महिलाओं को बराबर के मौके देने होंगे. रिपोर्ट में ये जिक्र भी है कि भारत की संसद में 2021 में दो बच्चों की पॉलिसी लाने की बात की गई थी और उसी हिसाब से लोगों को इंसेटिव दिए जाने पर बहुत चर्चा हुई. लेकिन भारत में कई लोगों के विचार ऐसे थे कि इससे लड़कियों पर लड़कों के जन्म को ज्यादा महत्व दिया जाएगा. लड़की पैदा करने वाली महिलाओं पर अत्याचार बढ़ेंगे. साथ ही ये पॉलिसी ज्यादा जन्म दर वाले धर्मों के खिलाफ होगी.

भारत में आज भी 23 प्रतिशत किशोरों की शादी हो जाती है, यानी 18 वर्ष से पहले 23 प्रतिशत लोगों की शादी हो जाती है. दुनिया में औसतन 106 लड़कों पर 100 लड़कियां पैदा होती हैं लेकिन 12 देशों में ये अंतर औसत से ज्यादा है. इन देशों में भारत भी शामिल है. 15 नवंबर 2022 को दुनिया की कुल आबादी 800 करोड़ हो गई थी. यूएन के अनुमान के हिसाब से 75 वर्षों में भारत की आबादी दोगुनी हो जाएगी, जबकि विश्व की कुल आबादी दोगुनी होने का अनुमान 76 वर्षों का है. 

ज्यादा जनसंख्या पर क्या सोचते हैं भारतीय?

यूएन ने 8 देशों के 7797 लोगों से जनसंख्या पर राय मांगी थी. भारत भी इन देशों में शामिल था. भारत से 1007 लोग सर्वे में शामिल थे. 63% भारतीयों को लगता है कि भारत पर बहुत आर्थिक दबाव है. 45% भारतियों को पर्यावरण पर बोझ की चिंता है तो 30% को मानव अधिकारों और प्रजनन के अधिकारों और सुविधाओं पर असर की चिंता ने परेशान किया है. 

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