मोदी सरकार हर हाल में 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाकर दोगुनी करने पर फोकस कर रही है. खास बात ये है कि सरकार की इस कोशिश के नतीजे भी सामने आने लगे हैं. खेती की लागत कम करने और फसलों की पैदावार बढाने में मृदा स्वास्थ्य कार्ड (सॉयल हेल्थ कार्ड) काफी फायदेमंद साबित हुआ है. इस बात की पुष्टि नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल (एनपीसी) की रिपोर्ट से होती है. एनपीसी की रिपोर्ट के अनुसार, मृदा स्वास्थ्य कार्ड का इस्तेमाल करने से तुअर की फसल से किसानों की आय में प्रति एकड़ 25,000-30,000 रुपये का इजाफा हुआ है. इसी प्रकार, धान की खेती से किसानों की आय में प्रति एकड़ 4,500 रुपये, सूर्यमुखी की खेती से 25,000 रुपये प्रति एकड़, मूंगफली से 10,000 रुपये प्रति एकड़, कपास से 12,000 रुपये प्रति एकड़ और आलू की खेती से प्रति एकड़ 3,000 रुपये की आमदनी बढ़ी है.

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

विशेषज्ञ बताते हैं कि इस रिपोर्ट से किसान अपने खेतों की मिट्टी की जांच करवाने को लेकर उत्साहित होंगे, क्योंकि रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया है कि किसान अगर मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार खेती करते हैं तो उनकी लागत कम होती है और उपज बढ़ती है.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी एनपीसी की रिपोर्ट के अनुसार, मृदा स्वास्थ्य कार्ड का उपयोग किए जाने से धान की उत्पादन लागत में 16-25 फीसदी तक की कमी आई है, जबकि दलहन फसलों की उत्पादन लागत 10-15 फीसदी घट गई है क्योंकि यूरिया का इस्तेमाल धान में जहां प्रति एकड़ 20 किलो कम हो गया है जबकि दलहन फसलों में इसका उपयोग 10 किलो प्रति एकड़ घट गया है.

वहीं, पैदावार की बात करें तो मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार, खेती करने से धान की पैदावार 20 फीसदी, गेहूं और ज्वार की पैदावार 10-15 फीसदी बढ़ी है, जबकि दलहनों की पैदावार में 30 फीसदी और तिलहनों में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है.

ज़ी बिज़नेस LIVE TV देखें:

कृषि आय द्विगुणीकरण (डीएफआइ) समिति के अध्यक्ष अशोक दलवई कहते हैं कि सॉयल हेल्थ कार्ड मिट्टी के लिए ब्लड टेस्ट रिपोर्ट की तरह है, जिसका उपयोग होने से किसान उर्वरक का इस्तेमाल जरूरत के मुताबिक करते हैं, जिससे उनकी लागत कम हो गई है. उन्होंने कहा कि एनपीसी की इस रिपोर्ट के बाद किसान सॉयल हेल्थ कार्ड के प्रति जागरूक होंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 फरवरी, 2015 को राजस्थान के सूरतगढ़ में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का शुभारंभ किया था. इसके बुधवार को पांच साल पूरे होने से पहले इसके प्रभावों पर एनपीसी की रिपोर्ट आई है. मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को दो साल पर जारी किए जाते हैं, जिसमें मिट्टी की जांच करके किसानों को बताया जाता है कि उन्हें किस प्रकार और कितनी मात्रा में उर्वरक का इस्तेमाल करना है.

कृषि मंत्रालय ने बताया कि 2015 से 2017 तक चलने वाले पहले चरण में किसानों को 1,10.74 करोड़ और 2017-19 के दूसरे चरण में 11.69 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड बांटे गए हैं.

एनपीसी की यह रिपोर्ट देश के 19 राज्यों के 76 जिलों में करवाए गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई है, जिसमें 170 मृदा स्वास्थ्य परीक्षण प्रयोगशालाओं और 1,700 किसानों से पूछताछ की गई.