भारत में सब्जियों की कीमत में 2014-15 के दौरान तेजी से गिरावट आई और इसके बाद सब्जियों के रुख में नरमी बरकरार है. अंतरराष्ट्रीय रिसर्च फर्म गोल्डमैन सैक्स ने कहा है कि 2015 में किए गए डिरेग्युलेशन के चलते ऐसा हुआ. इससे पहले 2013 तक कीमतों में भारी तेजी का रुख देखने को मिला. रिसर्च फर्म का अनुमान है कि आने वाले दिनों में कीमतों में नरमी का सिलसिला जारी रहेगा.

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गोल्डमैन सैक्स ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है, 'हमें लगता है कि सब्जियों की कीमत में आई गिरावट की मुख्य वजह बाजार का डिरेग्युलाइजेशन है. सब्जियों की कीमत में 2014 और 2015 के दौरान तेजी से गिरावट हुई और तब से ये रुख बरकरार है.14 राज्यों में कृषि उत्पाद और विपणन समिति (एपीएमसी) कानून में संशोधन के कारण ऐसा हुआ. इसके चलते बिचौलियों में कमी आई और किसान सीधे अपनी उपज बेचने में कामयाब हुए.'

2012 से ही कई राज्यों ने फलों और सब्जियों को एपीएमसी से अलग करने की शुरूआत कर दी थी. 2012 से 2016 के बीच 14 राज्यों ने फलों और सब्जियों को एपीएमसी एक्ट से अलग किया. इन 14 राज्यों में 6 ने ऐसा 2014 में किया. हालांकि सब्जियों के मामले में अभी भी कई चुनौतियां बरकरार हैं. सब्जियों की मार्केटिंग के लिए एक मजबूत सप्लाई चेन जरूरी है और ऐसे में वहां बिचौलियों की गुंजाइश बनी रहती है.

इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों को एपीएमसी कानून में सुधार करने की सलाह दी. चूंकि कृषि राज्यों से संबंधित विषय है, इसलिए इस बारे में पहल राज्यों को ही करनी थी. एपीएमसी कानून के तहत किसान सीधे ग्राहकों को उपज नहीं बेच सकते थे. उन्हें मंडी या थोक बाजार के जरिए ही उपज बेचनी होती थी. गोल्डमैन सेक्स ने कहा है कि अगर सक्रिय खाद्य प्रबंधन बना रहा तो फलों और सब्जियों की कीमतों में नरमी का रुख बना रहेगा.