Cheque Bounce Rules: चेक बाउंस के मामलों के तेज निपटारे की राह बनती दिख रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर बनी एक्सपर्ट कमेटी की खास अदालतें बनाने की सिफारिश को मान लिया है. जस्टिस एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एस रवींद्र भट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (एनआई) के तहत विशेष अदालतें महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्यों में स्थापित की जाएंगी, जिसे लेकर इन राज्यों के 5 हाईकोर्ट्स का जवाब मांगा गया है.

चेक बाउंस के 33 लाख मामले पेंडिंग

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सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपर्ट कमेटी की चेक बाउंस (Cheque Bounce) मामलें में विशेष अदालतों की सिफारिशों को मान लिया है. इसके लिए 5 हाई कोर्ट्स से विशेष अदालतों के गठन पर जवाब मांगा गया है. कमेटी का सुझाव था कि चेक बाउंस मामलों के तेज निपटारे के लिए विशेष अदालतें बनें. देश भर में चेक बाउंस के 33 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं.

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कमेटी ने इन राज्यों में दी कोर्ट बनाने की सलाह

स्पेशल कमेटी ने महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, दिल्ला और यूपी में स्पेशल पायलट कोर्ट बनाने का सुझाव दिया है. वहीं समन की सूचना के लिए नेशनल पोर्टल बनाने का भी सुझाव दिया है. कमेटी की राय थी कि जरूरत पड़ने पर इसके लिए रिटायर्ड न्यायिक अधिकारी नियुक्ति हो सकती है. एक्सपर्ट कमेटी के मुताबिक नए कोर्ट के लिए करीब 127 करोड़ रुपये खर्च होंगे और 1826 न्यायिक अधिकारियों को भर्ती करना होगा.

चेक बाउंस पर सजा

किसी स्थिति में चेक बाउंस होने के 15 दिन के नोटिस के बाद भी अगर पेमेंट नहीं की जाती है, तो सजा का प्रावधान है. अधिकतम 2 साल की सजा और या रकम से दोगुना दंड या दोनों लगाया जा सकता है. वित्त मंत्रालय ने चेक बाउंस (Cheque Bounce) को गैर आपराधिक करने पर पहले सुझाव मांगा था. बड़ी संख्या में कारोबारी वर्ग ने इसका विरोध किया था.

चेक बाउंस के मामलों में टॉप  5 राज्य  

राज्य                                         मामले लंबित   

महाराष्ट्र                                     5,60,914      

राजस्थान                                   4,79,774   

गुजरात                                      4,37,979  

दिल्ली                                       4,08,992   

उत्तर प्रदेश                                  2,66,777  

(13 अप्रैल 2022 तक)  

क्या है नियम

चेक बाउंस से जुड़े मामलों में Negotiable Instruments Act के Section 138 के तहत सुनवाई की जाती है. कानून के मुताबिक 6 महीने के अंदर चेक बाउंस के मामले का निपटारा करना होता है. लेकिन अक्सर इन मामलों में 3-4 साल का वक्त लग जाता है. वित्त मंत्रालय ने चेक बाउंस (Cheque Bounce) से जुड़े मामलों को सिविल केस में बदलने का प्रस्ताव दिया था, जिसे कारोबारियों की ओर से भारी विरोध के बाद ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.

लोगों के सुझाव

चेक बाउंस से जुड़े मामलों को सिविल केस में बदलने के खिलाफ 99 फीसदी लोगों ने अपना मत जाहिर किया था. लोग नहीं चाहते थे कि इसे सिविल केस में बदला जाए. प्रस्ताव के खिलाफ ज्यादातर सुझाव MSME की तरफ से आए थे. व्यापारियों का दावा था कि जेल का डर खत्म हो गया तो लोग नियमों की परवाह नहीं करेंगे. जिससे बैंकों और NBFC को भी बड़ा नुकसान होगा.

विदेश में क्या है नियम?  

अमेरिका

  • अलग अलग राज्य में सिविल और क्रिमिनल दोनों ही  
  • 2-3 गुने तक जुर्माना/1-10 साल तक जेल दोनों नियम  
  • रकम, बाउंस का केस कितनी बार इस पर भी सजा निर्भर 

युनाइटेड किंगडम

  • सिविल के मामले ही बनते हैं और आपराधिक केस नहीं  
  • चेक की रकम, उसके ऊपर ब्याज और वसूली का खर्च  

ऑस्ट्रेलिया  

  • सिविल का ही मामला बनता है, आपराधिक केस नहीं  
  • चेक की रकम, उसके ऊपर ब्याज और वसूली का खर्च  

फ्रांस  

  • सिविल का ही मामला बनता है, आपराधिक केस नहीं  
  • अगर बार बार डिफाल्ट तो नाम डेटाबेस में जाता है  
  • फिर 5 साल तक चेक जारी करने पर प्रतिबंध संभव  

सिंगापुर 

  • सिविल का ही मामला बनता है, आपराधिक केस नहीं  
  • चेक की रकम, ब्याज और वसूली पर खर्च की गई रकम  

दुबई 

  • चेक बाउंस में क्रिमिनिल और सिविल केस दोनों रास्ते  
  • तय रकम की सीमा के ऊपर तय फाइन का नियम लागू  
  • जेल की मियाद के बाद भी रकम रिकवरी का नियम