मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट सेंट्रल विस्टा को सुप्रीम कोर्ट से ग्रीन सिग्नल मिल गया है. प्रोजेक्ट में संसद की नई इमारत का निर्माण हो रहा है. नए संसद भवन के निर्माण के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गईं थीं. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण कमेटी की रिपोर्ट को भी नियमों को अनुरुप माना है और कहा की प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण की मंजूरी सही तरीके से दी गई थी. कोर्ट ने लैंड यूज चेंज करने के आरोप वाली याचिका को फिलहाल लंबित रखा है. साथ ही कहा कि कंस्ट्रक्शन शुरू करने के लिए हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी की मंजूरी भी ली जाए. 

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2:1 के बहुमत से सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

याचिकाओं पर जस्टिस एएम खानविल्कर, दिनेश माहेश्वरी और संजीव खन्ना की तीन जजों की बेंच ने अपना फैसला सुनाया. 2:1 के बहुमत से सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सरकार के पक्ष में दिया. सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की सभी कंस्ट्रक्शन साइट्स पर स्मॉग टावर लगाने और एंटी-स्मॉग गन इस्तेमाल करने का सुझाव भी दिया है. सेंट्रल विस्टा परियोजना का ऐलान सितंबर 2019 में हुआ था. इसमें संसद की नई तिकोनी इमारत होगी, जिसमें एक साथ लोकसभा और राज्यसभा के 900 से 1200 सांसद बैठ सकेंगे. इसका निर्माण 75वें स्वतंत्रता दिवस पर अगस्त, 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा. केंद्रीय सचिवालय का निर्माण 2024 तक पूरा करने की तैयारी है.

हर साल होगी एक हजार करोड़ रुपये की बचत: केंद्र

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 20 हजार करोड़ रुपए का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पैसे की बर्बादी नहीं है, बल्कि इससे धन की बचत होगी. इस प्रोजेक्ट से सालाना करीब एक हजार करोड़ रुपए की बचत होगी, जो फिलहाल 10 इमारतों में चल रहे मंत्रालयों के किराए पर खर्च होते हैं. इस प्रोजेक्ट से मंत्रालयों के बीच समन्वय में भी सुधार होगा. 

क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट?

सेंट्रल विस्टा के मास्टर प्लान के मुताबिक, पुराने गोलाकार संसद भवन के सामने गांधीजी की प्रतिमा के पीछे नया तिकोना संसद भवन बनेगा. यह 13 एकड़ जमीन पर बनेगा. इस जमीन पर अभी पार्क, अस्थायी निर्माण और पार्किंग है. नए संसद भवन में दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के लिए एक-एक इमारत होगी, लेकिन सेंट्रल हॉल नहीं बनेगा. पूरा प्रोजेक्ट 20 हजार करोड़ रुपए का है. राष्ट्रपति भवन, मौजूदा संसद भवन, इंडिया गेट और राष्ट्रीय अभिलेखागार की इमारत को वैसा ही रखा जाएगा. 

नई संसद की जरूरत क्यों?

मार्च 2020 में सरकार ने संसद में कहा कि पुरानी बिल्डिंग ओवर यूटिलाइज्ड हो चुकी है और खराब हो रही है. साथ ही 2026 में लोकसभा सीटों का नए सिरे से परिसीमन का काम शेड्यूल्ड है. इसके बाद सदन में सांसदों की संख्या बढ़ सकती है. बढ़े हुए सांसदों के बैठने के लिए पुरानी बिल्डिंग में पर्याप्त जगह नहीं है. इसके अलावा संविधान के आर्टिकल-81 में हर जनगणना के बाद सीटों का परिसीमन मौजूदा आबादी के हिसाब से करने का नियम था, लेकिन 1971 के बाद से नहीं हुआ. 2021 में इस बिल्डिंग को बने हुए 100 साल पूरे होने वाले हैं.

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