नाखून पर एक स्याही का निशान और ये मान लिया जाता है कि आपने वोट किया है. नाखून से स्याही हटती क्यों नहीं, क्या कभी सोचा है आपने? क्या आप जानते हैं कि इस स्याही की जरूरत क्यों पड़ी और इसका कब से इस्तेमाल हो रहा है. 19 अप्रैल से लोकसभा चुनाव शुरू हो चुके हैं, आपने वोटिंग के बाद वोटर के उंगलियों पर ये स्याही के निशान जरूर देखे होंगे. तो चलिए जानते हैं क्या है इस का इतिहास.

सिर्फ एक ही जगह होता है स्याही का निर्माण

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इस स्याही का निर्माण मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कंपनी द्वारा किया जाता है. यही कंपनी बाहर के देशों में भी चुनाव के समय स्याही की सप्लाई करती है. साल 1937 में इस कंपनी की स्थापना हुई थी. शुरुआत में संसदीय और विधानसभा चुनावों के लिए स्याही का उपयोग होता था. लेकिन बाद में नगर,निकायों और सहकारी समितियों को भी चुनाव के लिए स्याही का उपयोग करना पड़ा.

40 सेकंड में सुख जाती है स्याही

एक रिपोर्ट के अनुसार, अंगुली पर लगी ये स्याही 40 सेकंड से भी कम समय में सूख जाती है. इस स्याही का प्रयोग 1962 से किया जा रहा है. इसको भारतीय चुनाव में शामिल कराने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है. अभी तक चुनाव आयोग इसके दूसरे विकल्प को नहीं तलाश पाया है.70 साल से ज्यादा समय से इस स्याही का इस्तेमाल चुनावों में हो रहा है.इस स्याही का इस्तेमाल पल्स पोलियो प्रोग्राम द्वारा भी किया जाता है. जिन बच्चों को टीका लग जाता है, उन्हें टीका लगने का मार्क भी इसी स्याही से लगाया जाता है.

 

कैसे बनती है ये स्याही

इस स्याही को बनाना में सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है. सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है. सिल्वर क्लोराइड पानी में नहीं घुलता, इसे साबुन,पानी, डिटर्जेंट से धोया नहीं जा सकता है. इसी वजह से स्किन के किसी भी हिस्से में एक बार लगने के बाद कम से कम 72 घंटे तक यह इंक नहीं हटता है.  यह इंक पानी के कॉन्टेक्ट में आने पर काला हो जाता है.

क्यों हुई स्याही की जरुरत

इस खास स्याही को बनाने का मकसद फर्जी मतदान को रोकना था. ताकि लोग दो या तीन बार वोट न कर पाएं.

इन देशों में होती है इंक की सप्लाई

इलेक्शन इंक की सप्लाई  मेडागास्कर, नाइजीरिया, सिंगापुर, दुबई, लियोन, दक्षिण अफ्रीका, डेनमार्क, मंगोलिया, मलेशिया, कनाडा, कंबोडिया, घाना, आइवरी कोस्ट, अफगानिस्तान, तुर्की, नाइजीरिया, पापुआ न्यू गिनी, नेपाल, समेत कई देशों में की जाती है.