सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को दिये गए कर्ज में जून माह में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसयू) का हिस्सा घटा और इसके विपरीत निजी बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई. एक रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है. ट्रांसयूनियन सिबिल और सिडबी की तिमाही रिपोर्ट में कहा गया है कि जून 2018 में एमएसएमई को कर्ज देने के मामले में 21 सार्वजनिक बैंकों की हिस्सेदारी घटकर 50.7 प्रतिशत रह गयी. जबकि जून 2017 में यह 55.8 प्रतिशत और जून 2016 में 59.4 प्रतिशत थी.

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एमएसएमई क्षेत्र को दिये गये कुल कर्ज में जून 2018 में 16.1 प्रतिशत की वृद्धि हुयी. इस दौरान, सरकारी बैंकों के कर्ज में 5.5 प्रतिशत जबकि इसकी तुलना में निजी क्षेत्र की कंपनियों की कर्ज वृद्धि 23.4 प्रतिशत रही. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि मुनाफे में कमी और कुल संपत्ति की चिंताओं के चलते 11 सरकारी बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) सूची में रखा है. जिसने बैंकों के कर्ज देने की प्रक्रिया को प्रभावित किया.

रिपोर्ट के अनुसार, जून 2018 में निजी क्षेत्र के बैंकों की एमएसएमई क्षेत्र को दिये गये कर्ज में हिस्सेदारी बढ़कर 29.9 प्रतिशत हो गयी, जो कि पिछले वर्ष इसी महीने 28.1 प्रतिशत थी. इस दौरान गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की हिस्सेदारी पिछले वर्ष इसी महीने 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 11.3 प्रतिशत हो गयी. एमएसएमई क्षेत्र के लिये सार्वजनिक बैंकों का एनपीए पिछले वर्ष जून में 14.5 प्रतिशत से बढ़कर इस वर्ष इसी महीने 15.2 प्रतिशत हो गया. जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों का एनपीए मामूली गिरकर 4 प्रतिशत से 3.9 प्रतिशत हो गया.