बाजार में गुरुवार को कच्चे तेल की चाल बढ़त के साथ दिखी. हालांकि, पिछले सत्र में क्रूड ऑयल सात महीनों के अपने सबसे निचले लेवल पर पहुंच गया था. जनवरी के बाद से ऐसा पहली बार हुआ जब क्रूड 85 डॉलर प्रति बैरल के रेट तक गिर गया है. डिमांड कम होने के डर के बीच तेल में यह गिरावट देखी गई. हालांकि, आज कमोडिटी ने थोड़ा बेहतर किया. ब्रेंट क्रूड में 0.77 प्रतिशत के आसपास तेजी दर्ज हो रही थी और इसकी कीमत 88.65 डॉलर के आसपास चल रही थी.

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क्रूड ऑयल सप्लाई और एनर्जी बिल से जूझ रहे यूरोपीय देशों को लेकर एक सवाल उठता है कि भारत के लिए एनर्जी सेक्टर में आत्मनिर्भर होना कितना अहम है? रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद विकराल हो चुकी एनर्जी सेक्टर की समस्याएं यूरोप को रुला रही हैं. वैसे भारत इस मुकाबले फिर भी कहीं बेहतर स्थिति में रहा है.

अमेरिका भी अपने एनर्जी सोर्स के साथ इस समस्या से दूर ही है. यूएस के पास अपना एनर्जी सोर्स है, तो उसे सप्लाई को लेकर यूरोप की चिंताएं उतना प्रभावित नहीं करेंगी. क्रूड प्राइसेज़ बढ़ने का असर तो दोनों ही देशों पर है, लेकिन यहां इतना त्राहिमाम भी नहीं है. 

"एनर्जी के लिए किसी और का मुंह देखना बंद करना जरूरी"

हालांकि, भारत के सामने अपने एनर्जी सोर्स बढ़ाने की चुनौती है. क्रूड की सप्लाई की चुनौतियों और रिन्युएबल एनर्जी को अपनाने के लिए भारत को एनर्जी के नए विकल्प ढूंढने जरूरी हैं. क्रूड के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता भारत को कहीं न कहीं कमजोर करती है. एनर्जी के लिए हम किसी और का मुंह देखना बंद करें यह बहुत जरूरी है. हालांकि, देश में ग्रीन एनर्जी को अपनाने पर पूरा जोर दिया जा रहा है.

Zee Business के मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी ने कहा कि हम कितने वक्त में एनर्जी को लेकर आत्मनिर्भर हो जाएंगे, इसपर अभी कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है, लेकिन अगर ऐसा हो जाता है तो हम आने वाले वक्त में भी ग्लोबली बड़ी तेजी के लिए तैयार होंगे. देश में कच्चा तेल आयात करने में सबसे ज्यादा पैसा खर्च होता है. अगर हम कच्चे तेल के आयात पर निर्भर नहीं हैं तो हमारा रिजर्व बढ़ेगा. 

उन्होंने कहा कि भारत या तो खुद का क्रूड निकालने पर काम करे, लेकिन यह बहुत जटिल और लंबी प्रक्रिया है. इसमें यह बात भी होती है कि पता नहीं तेल मिले या न मिले. या फिर हम रिन्युएबल एनर्जी को ज्यादा बढ़ावा दें. हालांकि, इसकी भी एक समस्या है. हम एनर्जी के अल्टरनेटिव सोर्स ढूंढ रहे हैं, लेकिन हमारी तेजी से बढ़ती इकोनॉमी में डिमांड भी काफी तेजी से बढ़ रही है. सरकार जहां एक ओर रिन्युएबल एनर्जी को बढ़ावा दे रही है, वहीं, दूसरी ओर नए ग्राहक तैयार हो रहे हैं और तेल की मांग बढ़ती जा रही है.

हम आत्मनिर्भर बन रहे हैं, अपने मैन्युफैक्चरिंग हब बना रहे हैं, लेकिन अगर हमारे यहां भी ऐसी क्राइसिस आ गई तो हम क्या करेंगे? ऐसे में हमारे पास अभी वक्त है जब हम आत्मनिर्भर हो सकेंगे, लेकिन हमारी इकोनॉमी के लिए यह जरूरी है कि हम एनर्जी के लिए अपने सोर्स तैयार करें.