बजट 2019 : एशिया की सबसे बड़ी ऊंझा मंडी के किसानों को सरकार से हैं बड़ी उम्मीदें
किसानों की सबसे बड़ी दिक्कत है उनकी फसल का सही दाम नहीं मिलना. अगर सही दाम मिले तो किसान को सरकार के आगे हाथ फैलाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.
एशिया की सबसे बड़ी मसाला मंडी गुजरात के ऊंझा में है. ऊंझा को भारत की स्पाइस सिटी भी कहा जाता है. यहां पर जीरा, इसबगौल, रायड़ा, सौंफ समेत तमाम मसाला फसलों का सौदा होता है और विदेशों को निर्यात भी होता है. बजट को लेकर इस मंडी के किसानों की भी कई सारी हैं.
क्या चाहता है किसान बजट से
ऊंझा एपीएमसी मार्केट के चेयरमैन गौरांग पटेल का कहना है कि किसानों की सबसे बड़ी दिक्कत है उनकी फसल का सही दाम नहीं मिलना. अगर सही दाम मिले तो किसान को और कोई जरूरत ही नहीं है. दरअसल जिस दाम में किसान अपनी फसल बेचता है, उसी फसल को 10 गुना ज्यादा दाम आम आदमी को बेच दिया जाता है. लेकिन किसान के हाथ में इतना भी नहीं आता कि उसकी लागत भी निकल सके. इसलिए किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिलना चाहिए. बजट में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए.
राजस्थान से सौंफ बेचने आए एक किसान का यह कहना है कि पिछले साल सौंफ का दाम लगभग 170 रुपये प्रति किलोग्राम था जो इस साल घटकर 120 रुपये के आसपास हो गया है. दाम में स्थिरता होनी चाहिए.
बजट से उम्मीद
- किसान को उसकी फसल का सही दाम मिलना चाहिए.
- देशभर में उपज के दाम स्थिर होने चाहिए. साल-दर-साल उसमें उतार-चढ़ाव नहीं होना चाहिए.
- सरकारी खरीद पर किसान को भुगतान तुरंत होना चाहिए. अभी भुगतान मिलने में महीनाभर तक लग जाता है.
- महंगाई के अनुपात में फसल के दाम भी साल-दर-साल बढ़ने चाहिए. जैसे जीरा का दाम 10 वर्षों से स्थिर हैं.
- मसाला फसल और फल-सब्जी के लिए भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित होना चाहिए.
- किसान के उत्पाद पर 5 फीसदी मार्केटिंग यार्ड में जीएसटी लगता है उसको घटाकर 3 फीसदी होना चाहिए.
- खेती के लिए डीजल सब्सिडी रेट पर मिलना चाहिए और बिजली के कृषि कनेक्शन पर भी राहत मिलनी चाहिए.
- किसानों के लिए भी एक निश्चित भत्ता मिलना चाहिए.
एक अन्य किसान ने बताया कि किसान अन्नदाता है और किसान कभी नहीं चाहता कि वह कर्ज लेकर फिर उसके माफ होने की उम्मीद करे. अगर किसान को उसकी फसल का सभी दाम मिलने लग जाए तो सारी समस्याएं ही खत्म हो जाएं. जिस तरह कोई निर्माता अपने सामान की कीमत खुद तय करता है, वही हक किसान को भी मिलना चाहिए. हर काम-धंधा मुनाफे की नींव पर टिका होता है जबकि किसान की सारी दौलत और उसकी मेहनत सरकार की दया के भरोसे होती है, जोकि सरासर गलत है.