वित्‍त मंत्री अरुण जेटली 1 फरवरी को अंतरिम बजट (Interim Budget) पेश करेंगे. परंपरा के अनुसार, जिस वर्ष लोकसभा चुनाव होने वाले होते हैं, उस साल केंद्र सरकार पूरे वित्‍त वर्ष की जगह कुछ महीनों का बजट ही पेश करती है. चुनाव के बाद बनने वाली सरकार पूर्ण बजट पेश करती है. आइए जानते हैं कि अंतरिम बजट क्‍या होता है और यह पूर्ण बजट से किस प्रकार भिन्‍न होता है.

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क्‍या है अंतरिम बजट?

जब केंद्र सरकार के पास पूर्ण बजट पेश करने का वक्‍त नहीं होता है तो वह अंतरिम बजट पेश करती है. लोकसभा चुनाव के वाले वर्ष में सरकार के पास समय तो होता है लेकिन परंपरा के अनुसार चुनाव संपन्‍न होने तक के समय के लिए बजट पेश करती है. अंतरिम बजट यह पूरे साल की बजाय कुछ समय तक के लिए ही होता है. हालांकि, सरकार अंतरिम बजट ही पेश करने के लिए बाध्‍य नहीं होती है लेकिन परंपरा के मुताबिक इसे चुनाव के बाद आने वाली सरकार पर छोड़ दिया जाता है. नई सरकार के गठन के बाद वह आम बजट पेश करती है.

जानें अंतरिम बजट और आम बजट में फर्क

अंतरिम और आम बजट में सरकारी खर्चों के लिए संसद से मंजूरी ली जाती है. अंतरिम बजट में सरकार आम तौर पर कोई नीतिगत फैसला नहीं करती है. इसकी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है. यह परंपरा रही है कि चुनाव के बाद गठित सरकार ही अपनी नीतियों के मुताबिक फैसले ले और योजनाओं की घोषणा करे. हालांकि, कुछ वित्त मंत्री अंतरिम बजट में नीतिगत फैसले ले चुके हैं.

अंतरिम बजट में बदले गए टैक्स रेट

वित्त वर्ष 2015 के लिए अंतरिम बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए सेंट्रल एक्साइज टैक्स को घटाया था. वित्त वर्ष 2010 के अंतरिम बजट के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लेखानुदान पर अपने जवाब में एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स की दरों में 2 फीसदी की कटौती की थी. 2004 में तत्कालीन वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने वोट ऑन अकाउंट के कुछ ही दिनों पहले इनडायरेक्ट टैक्स में कमी की घोषणा की थी.

अंतरिम बजट और लेखानुदान (Vote on Account) में ये है फर्क

जब केंद्र सरकार को पूरे वित्‍त वर्ष की जगह कुछ ही महीनों के लिए संसद से जरूरी खर्च के लिए अनुमति लेनी होती है तो वह अंतरिम बजट की बजाय वोट ऑन अकाउंट (Vote on Account) पेश कर सकती है. अंतरिम बजट और वोट ऑन अकाउंट दोनों ही कुछ ही महीनों के लिए होते हैं लेकिन दोनों के पेश करने के तरीकों में तकनीकी अंतर होता है. अंतरिम बजट में केंद्र सरकार खर्च के अलावा राजस्व का ब्यौरा भी पेश करती है जबकि वोट ऑन अकाउंट में सिर्फ खर्च के लिए ही संसद की मंजूरी मांगी जाती है.