Natural Farming: खेती-बाड़ी की लागत कम करने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheit) पर जोर दिया है. रासायनिक खेती में खेती की लागत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है जबकि प्राकृतिक खेती में लागत बहुत ही कम है. इसी कड़ी में, हिमाचल प्रदेश के एक परिवार के ससुर और बहू ने अपने खेत में इस्तेमाल होने वाले केमिकल को तिलांजलि देकर अपने क्षेत्र को रासायनमुक्त करने की मुहिम छेड़ी है. कर्मचंद और उनकी बहू रजीना प्राकृतिक खेती से जुड़ गए और इन्होंने अपनी पूरी जमीन को प्राकृतिक खेती में बदल दिया. इससे उनकी कमाई में बढ़ोतरी हुई.

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रजीना का कहना है कि प्राकृतिक खेती विधि में उन्हें शुरुआती दौर में ही बहुत अच्छे नतीजे देखने को मिले. उन्होंने कहा इस खेती विधि में न सिर्फ उन्हें बेहतर पैदावार मिली बल्कि इससे उनकी क्षेत्र में नई पहचान भी मिली. प्राकृतिक खेती (Natural Farming) करने वारी रजीना को एक प्रगतिशील किसान के रूप में पहचाना जाता है.

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कीट, रोग का असर कम

रजीना के ससुर कर्मचंद का कहना है कि प्राकृतिक खेती की फसलों और रासायनिक खेती की फसलों में साफ अंतर देखने को मिलता है. उन्होंने बताया कि इस बार पीला रतुआ आया था लेकिन इसका प्रकोप हमारी गेहूं में कम हुआ और हमने प्राकृतिक खेती विधि में बताए हुए आदानों से इसका बेहतर नियंत्रण भी किया. कर्मचंद कहते हैं कि हमने अपने खेतों में प्राकृतिक खेती मॉडल लगाया हुआ है, जिसे हम गांव व पंचायत के अन्य किसानों को दिखाकर इस खेती विधि को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

रजीना के खेती मॉडल और क्षेत्र में प्राकृतिक खेती के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें प्राकृतिक खेती महिला किसान के राज्य स्तरीय कार्यशाला में भी भाग लेने का मौका मिला था. इस कार्यक्रम में रजीना ने प्राकृतिक खेती से संबंधित अपने अनुभव किसानों के सामने साझा किए थे.

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300 से ज्यादा किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा

रजीना अभी क्षेत्र के 300 से ज्यादा किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ चुकी हैं और उनका कहना है कि आने वाले समय में वे पूर ब्लॉक को प्राकृतिक खेती से जोड़ देंगी. प्राकृतिक खेती में पहले साल से ही बेहतर नतीजे देखने को मिलते हैं. अगर हम इसे पूरी तरह अपनाएं. किसानों को चाहिए की इस विधि को अच्छे से अपनाएं जिससे उन्हें बहुत अच्छे नतीजे देखने को मिलेंगे.

कम लागत में ज्यादा मुनाफा

रजीना और कर्मचंद अपनी पूरी जमीन में प्राकृतिक खेती विधि से फ्रासबीन, प्याज, लहसुन, मटर, गेहूं, धान, मक्की, गोभी, मूली, शलगम, भिंडी, धनिया, पालक, बैंगन और खीरा की खेती कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, उनका कहना है कि रासायनिक खेती में 8000 रुपये के खर्चे में 75,000 रुपये की कमाई होती थी. लेकिन प्राकृतिक खेती विधि अपनाने पर लागत घटकर 2000 रुपये हो गई और मुनाफा लाखों में होने लगा.

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