किसान यूनियन के नेताओं ने सरकारी एजेंसियों की ओर से पांच साल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर दालें, मक्का और कपास खरीदने के केंद्र के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है और कहा कि यह किसानों के हित में नहीं है. तीन केंद्रीय मंत्रियों - पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा और नित्यानंद राय ने रविवार को चंडीगढ़ में चौथे दौर की वार्ता के दौरान किसानों को एक प्रस्ताव दिया था. केंद्र ने जिन फसलों को सुनिश्चित एमएसपी पर खरीदने का प्रस्ताव दिया था, उनमें कपास और मक्का के अलावा तीन दालें - अरहर, अरहर और उड़द शामिल हैं. सरकार का प्रस्ताव था कि एनसीसीएफ, एनएएफईडी और कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया जैसी केंद्रीय एजेंसियां किसानों से फसल खरीदने के लिए पांच साल के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर करेंगी. लेकिन किसानों की ओर से इस प्रस्ताव को खारिज किए जाने के बाद से लगता है आंदोलन अभी जारी रहेगा.

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MSP के साथ किसानों की कई दूसरे मांगों के बीच अभी भी एमएसपी पर स्थिति साफ नहीं है. क्या है ये, इसकी मांग कितनी जायज है और सरकार के ऊपर इसका कितना बोझ बढ़ेगा. अर्थशास्त्री एवं स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने इन सवालों पर जवाब दिया है.

1966 में पहली बार लागू हुई थी MSP

अर्थशास्त्री एवं स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने कहा कि देश में एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य 1966 से लागू हुई. तब देश में खाद्यानों का अभाव था और उसके उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए उस सरकार ने इसे लागू करने का फैसला लिया. इसमें गेहूं, चावल इत्यादि फसलों को तब शामिल किया गया. धीरे-धीरे करके इसमें और भी फसलें शामिल होती गई और इसका फॉर्मूला भी बदलता गया.

मोदी सरकार ने 23 फसलों का MSP निर्धारित किया

इसके निर्धारण के लिए सरकार की तरफ से एक संस्था काम करती है. ऐसे में वर्तमान की पीएम मोदी सरकार ने इसके लिए किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांगों को देखते हुए एम एस स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के कुछ हिस्से को 23 फसलों पर इसको लागू किया.

किसानों को ऐसे मिल रहा MSP का लाभ

केंद्र की वर्तमान सरकार के घोषणा पत्र में भी यह था कि कृषि उत्पादन के लागत से 50 फीसदी ज्यादा किसानों को मिले. सरकार ने वही किया और इस दर पर खरीद और कीमत दोनों बढ़ी. ऐसे में सरकार की सोच दर्शाती है कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ज्यादा से ज्यादा अनाज किसानों से खरीदना चाहती है.

सरकार पर MSP पर खरीद से पड़ता है अतिरिक्त बोझ

अभी तक जो न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर व्यवस्था है, उसको लेकर बता दें कि केंद्र और राज्य सरकार जब इस मूल्य पर किसानों से अनाज खरीदती है तो उस पर अतिरिक्त वित्तीय भार भी पड़ता है. सरकार के पास कई तरह के खर्च हैं, इस सब के बीच किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के लिए सरकार के पास कितना बजट बचता है यह बड़ा सवाल है. जबकि सबको पता है कि देश में संसाधन सीमित हैं.

सरकार को इसे कानूनी जामा पहनाने में यहां आ रही परेशानी

ऐसे में सरकार के पास जब तक एक सुनिश्चित राशि नहीं आती है तो न्यूनतम समर्थन मूल्य को अमली जामा पहनाने में सरकार को परेशानी आ सकती है, क्योंकि इसके अलावा भी सरकार को कई और मदों पर खर्च करना पड़ता है. जिस समय सरकार की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की व्यवस्था की गई थी तब उसकी जरूरत थी. अब हमारे पास खाद्यान्न का उत्पादन सरप्लस में है. ऐसे में इस सरप्लस खाद्यान्न का हमको ऐसा नियोजन करना पड़ेगा कि किसानों को भी इसका लाभ मिले और सरकार पर भी इसका अतिरिक्त बोझ ना पड़े. ऐसे में किसान को अनाज कम भाव पर बेचने के लिए मजबूर ना होना पड़े, इसकी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए. इसके लिए सरकार को एक मॉडल तैयार करने की जरूरत है ताकि सरकार को कम बोझ पड़े. अब तो हमारे पास वेयर हाउसेस हैं, ई-मार्केटिंग की व्यवस्था है, इसे अगर जोड़ दिया जाए तो सबकुछ बदल जाएगा.

जिन फसलों पर ज्यादा MSP उसका होता है यह हाल

हम जिस फसल पर ज्यादा एमएसपी देंगे, उससे फसलों का उत्पादन बढ़ता है. लेकिन, कई बार यही फसलों का बढ़ा उत्पादन गलत दिशा में चली जाती है. ऐसे में एमएसपी और अन्य उपायों का एक मिक्सचर सरकार को तैयार करना होगा. ऐसे में नई फसलों के उत्पादन और उसके लिए प्रोत्साहन पर भी सरकार को ध्यान देना होगा.