steel prices hike : टाटा स्टील (Tata Steel) के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और प्रबंध निदेशक टीवी नरेंद्रन (Tata Steel CEO and MD TV Narendran) ने कहा है कि स्टील के दाम में बढ़ोतरी (steel prices hike) से घरेलू बाजार में मांग पर असर नहीं पड़ेगा. पीटीआई की खबर के मुताबिक, उन्होंने यह भी कहा कि पिछले कुछ महीनों की तुलना में निश्चित रूप से स्टील के दाम steel prices in India) बढ़े हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुकाबले दर अभी भी कम हैं.

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स्टील का इस्तेमाल (Steel use)

खबर के मुताबिक, स्टील का इस्तेमाल निर्माण, वाहन, उपभोक्ता सामान आदि क्षेत्रों में होता है. ऐसे में दाम बढ़ने पर इन क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है. नरेंद्रन ने कहा कि पिछले कुछ महीनों के मुकाबले निश्चित रूप से दाम तेज है लेकिन दुनिया के बाकी देशों की तुलना में यह अभी भी कम है. मुझे नहीं लगता कि इससे मांग पर असर पड़ना चाहिए.

भारत में बाकी देशों के मुकाबले बेहतर मूल्य उपलब्ध (Better price available in India than other countries)

यह पूछे जाने पर कि क्या स्टील के दाम में बढ़ोतरी का असर देश के ग्राहकों की मांग पर पड़ेगा, उन्होंने उक्त बात कही. उन्होंने कहा कि अमेरिका में अगर ‘हॉट रोल्ड कॉयल’ (फ्लैट स्टील उत्पाद) के दाम अमेरिका में 1,500 डॉलर प्रति टन, यूरोप में 1,000 यूरो प्रति टन है. इसलिए मुझे लगता है कि भारत में स्टील का इस्तेमाल करने वालों के लिए दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले बेहतर मूल्य उपलब्ध है.

भारत में स्टील के दाम इस सबसे उच्चतम स्तर पर (Steel prices in India at this highest level)

टाटा स्टील के सीईओ ने कहा कि स्टील के ज्यादा उपयोग वाले उत्पादों के निर्यातक बेहतर स्थिति में है क्योंकि भारत में जो दाम है, वह उन्हें वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी होने का मौका देता है. भारत में स्टील के दाम इस सबसे उच्चतम स्तर पर हैं. मई 2021 में स्टील बनाने वाली कंपनियों ने हॉट रोल्ड कॉयल (एचआरसी) के दाम 4,000 रुपये बढ़ाकर 67,000 रुपये प्रति टन कर दिये. जबकि कोल्ड रोल्ड कॉयल (सीआरसी) की कीमत 4,500 रुपये बढ़ाकर 80,000 रुपये प्रति टन कर दी गई है.

एचआरसी और सीआरसी का उपयोग (Use of HRC and CRC)

एचआरसी और सीआरसी दोनों स्टील की चादरें हैं. इनका उपयोग वाहन, उपकरण और निर्माण क्षेत्रों में होता है. बहरहाल, विशेषज्ञों का कहना है कि स्टील के दाम बढ़ने से वाहन, उपभोक्ता सामान और निर्माण लागत पर असर पड़ेगा क्योंकि इन क्षेत्रों में कच्चे माल के रूप में इस्पात का उपयोग होता है.

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