बाज़ार में आज से एक और कंपनी मायलन की रेमडिसिविर दवाई आ गई है. ये दवा कारोना में काम आती है और इसकी भारी मांग है. कंपनी ने इसे 4800 रुपए के भाव पर बाज़ार में उतार है. इससे पहले हेटेरो की रेमडेसिविर 5400 रुपए और सिप्ला की रेमडेसिविर 4000 रुपए के भाव पर बाज़ार में आ चुकी है. रेमडिसिविर की भारी मांग की वजह से काला बाज़ारी हो रही है. तय दाम के मुकाबले 10 गुना तक कीमत पर ये दवा बेची जा रही थी. माना जा रहा है कि अब दूसरी कंपनियों की सप्लाई बढने से काला बाज़ारी में कमी आएगी. 

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हाल के दिनों में महाराष्ट्र और गुजरात के ड्रग कंट्रोलर्स ने कई लोगों के खिलाफ मामला दर्ज़ कर कार्रवाई शुरू की है. गुजरात में दवा बिना वजह डॉक्टर न लिखें इसकी निगरानी के लिए एक समिति भी बनाई गई है. केंद्र सरकार ने भी कंपनियों से कहा है कि वो लोगों की दिक्कतों को देखते हुए हेल्पलाइन नंबर शुरु करें. जहां ज़रूरतमंद दवा की सप्लाई के बारे में पता कर सकें और अपनी ज़रूरत बता सकें. दरअसल, ये दवा कोराना के इलाज में कुछ हद तक कारगार हो रही है. ऐसे में डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन लिख रहे हैं.

रेमडिसिविर की सप्लाई बढ़ी

  • मायलन ने रेमडिसिविर को बाज़ार में उतारा.
  • करीब 4800 रुपए के आसपास रेट पर सप्लाई हुई.
  • सप्लाई में दिक्कत के लिए हेल्पलाइन 7829980066
  • सबसे पहले हेटेरो लैब्स ने 5400 रु पर उतारा था.
  • उसके बाद सिप्ला की 4000 रु के रेट पर सप्लाई.
  • दवा की कम सप्लाई से काला बाज़ारी हो रही थी.
  • महाराष्ट्र और गुजरात के FDA ने धरपकड़ शुरु की.
  • गुजरात में दवा के बेजा प्रिस्क्रिप्शन की निगरानी.
  • तय रेट से 10 गुने भाव पर बेची जा रही थी दवा.
  • कोरोना के इलाज में कुछ हद तक कारगार है दवा.
  • दवा की सप्लाई सीधे अस्पतालों, संस्थानों को ही.

ऊंची कीमतें सरकार के लिए भी चिंता

रेमडिसिविर की काला बाज़ारी और ऊंची कीमतों को लेकर सरकार में भी चिंता है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन देश की जानी मानी रिसर्च संस्था CSIR ने कीमतों में कमी लाने के लिए NPPA को चिट्ठी लिखी है. जिसमें मुख्यतौर पर ये कहा गया है कि दवा कंपनियों की रॉ मैटेरियल की लागत के आधार पर कीमत तय की जाए ताकि ये लोगों के लिए महंगी न रहे. हालांकि, ज़ी मीडिया को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक NPPA (नेशनल फार्मा प्राइसिंग अथॉरिटी) कीमतों की सीमा तय करने पर अभी कोई फैसला नहीं लेना चाहता. क्योंकि ऐसा करने से दवाओं की सप्लाई प्रभावित हो सकती है. 

खुद सस्ती होंगी दवाएं

सूत्रों के मुताबिक प्राइसिंग रेगुलेटर का ये मानना है कि आने वाले समय में दवा कंपनियों में आपसी होड़ बढ़ने पर कीमतें अपने आप नीचे आ जाएंगी. ज्यादा से ज्यादा ज़रूरत पड़ने पर दवा कीमतों को कम करने की एक एडवाइज़री जारी की जा सकती है. फिर रेगुलेटर दवा कंपनियों की लागत और सप्लाई का ब्योरा मांग सकता है. हालांकि, अब तक किसी कंपनी से इस बारे में जानकारी भी नहीं मांगी गई है. 

NPPA तय कर सकता है दाम

NPPA ने ऐसी ही एडवाइज़री N-95 मास्क को लेकर भी जारी की थी, जिसके बाद दाम घटने लगे थे. दरअसल, रेमडेसिविर और कोरोना में काम आने वाली कई दवाएं प्राइस कंट्रोल के दायरे के बाहर हैं. हालांकि, ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 में पैरा 19 के तहत जन हित में किसी भी ड्रग यानि दवा और मेडिकल डिवाइस जो ड्रग की कैटेगरी में आ चुकी हो उसका कीमत NPPA तय कर सकता है. NPPA ने इसी अधिकार के तहत स्टेंट की कीमतों में भारी कटौती कर दी थी. बाद में आर्थोपोडिक इम्पलांट के दाम भी घटाए गए थे. 

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रेमडेसिविर: अभी NPPA का प्राइस कैपिंग प्लान नहीं

  • ऑर्डर के बदले कंपनियों को दाम घटाने की एडवाइज़री संभव: सूत्र
  • प्राइस कैपिंग की स्थिति में मार्केट में सप्लाई में कमी का खतरा: सूत्र
  • CSIR की ओर से लागत देखकर प्राइस कैप के सुझाव की खबरें.
  • हेटेरो लैब्स और सिप्ला की ही ओर से रेमडेसिविर की सप्लाई.
  • अभी दो कंपनियों के रेमडेसिविर के MRP में 1400 रु अंतर.
  • ब्लैक मार्केट में रेमडेसिविर की कीमत MRP से 10 गुना तक.