कोल इंडिया लिमिटेड की सब्सिडियरी कंपनी महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड ओडिशा में एक इंटीग्रेटेड ग्रीनफील्ड एलुमिनियम प्रोजेक्ट में 34,072 करोड़ निवेश करने के लिए सरकार से मंजूरी चाहती है. इस प्रोजेक्ट में 2 मिलियन टन का एलुमिना रिफाइनरी, आधे मिलियन टन का एलुमिनियम स्मेल्टर (धातु गलाने वाला संयंत्र) और एक 1,400 मेगावाट का कैप्टिव पावर प्लांट शामिल है. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

प्रस्तावित निवेश के तहत इस एलुमिनियम कॉम्प्लेक्स में ओडिशा के सिजिमाली या कुत्रुमाली में बॉक्साइट के ब्लॉक का अधिग्रहण किया जाना है, लक्ष्य यहां से सालाना छह मिलियन टन बॉक्साइट का खनन करना है. शुरुआत में, इससे एलुमिनियम की सिल्लियां बनाई जाएंगी, और इनसे जो प्रॉडक्ट बनेंगे, उनकी कीमत बाद में तय की जाएगी.

अब चूंकि MCL की योजना इस प्रोजेक्ट में 10,222 करोड़ इक्विटी के तौर पर निवेश करने का है, जिसमें डेट-इक्विटी का अनुपात 70:30 होगा, तो यहां मामला फंसता दिख रहा है, क्योंकि लोक उद्यम विभाग (Department of Public Enterprises) के नियम के मुताबिक, कोई भी मिनीरत्न कंपनी किसी भी प्रोजेक्ट में अपने नेट वर्थ का बस 15 फीसदी ही निवेश कर सकती है, जोकि 500 करोड़ के अंदर होना चाहिए. वहीं कुल परियोजना में इसका निवेश नेट वर्थ के 30 पर्सेंट से ज्यादा नहीं होना चाहिए. ऐसे में MCL ने लोक उद्यम विभाग से निवेश की सीमा को लेकर छूट मांगी है.

डिविडेंड के बाद MCL का नेटवर्थ 9,716 करोड़ अनुमानित है, इसका 30 फीसदी महज 2,914.8 करोड़ होगा, जोकि इक्विटी के तौर पर देखा जाएगा. एक अधिकारी ने कहा कि निवेश की सीमा पर छूट के लिए कंपनी को डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंंड पब्लिक असेट मैनेजमेंट (DIPAM) से अनुमति लेने की जरूरत होगी, जोकि सभी केंद्र सरकार के तहत आने वाली PSUs के कैपिटल स्ट्रक्चर और नेट वर्थ से जुड़े मामलों को देखता है.

शुरुआत में कोल इंडिया ने National Aluminium Corp. Ltd (NALCO) के साथ एक जॉइंट वेंचर शुरू करने की योजना थी, जिसमें MCL के पास 74 फीसदी की हिस्सेदारी होती और बाकी हिस्सा NALCO के पास होता. लेकिन इस जॉइंट वेंचर का प्लान अगस्त, 2022 में कैंसल कर दिया गया और MCL के बोर्ड ने पिछली जनवरी में इस प्रोजेक्ट कॉम्पलेक्स के लिए एक स्पेशल परपज़ व्हीकल तैयार करने का फैसला किया.

MCL का ये नया वेंचर तब आ रहा है, जब भारत ने ग्लासगो में हुए COP-26 में ये प्रण लिया है कि वो देश को 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन की ओर ले जाएगा. भारत के इस लक्ष्य की घोषणा के बाद कोल इंडिया ने अपने कोयला खनन के कोर बिजनेस सेहटकर नॉन-फॉसिल फ्यूल एरिया में डाइवर्सिफाई करने का फैसला किया, ताकि दूसरे बिजनेस से एक सतत आय आती रहे. अधिकारी ने कहा कि और चूंकि एलुमिनियम के उत्पादन में कोल और एलुमिना महत्वपूर्ण घटक हैं, तो ऐसा प्रोजेक्ट चुनना कंपनी के लिए स्वाभाविक था.

इसके अलावा, भारत में ऑटोमोबाइल, कन्स्ट्रक्शन और पावर सेक्टर में अच्छी ग्रोथ से एलुमिनियम की मांग पिछले पांच सालों में 10 फीसदी के CAGR से बढ़ी है. MCL की अपनी स्टडी में पता चला कि घरेलू मांग के चलते एलुमिनियम स्मेलटर लगाने से व्यापार की अपार संभावनाएं हैं, क्योंकि 2030 में जबतक ये परियोजना शुरू होगी, तबतक अनुमानित डिमांड-सप्लाई में लगभग 2.25 मिलियन टन का गैप देखने को मिल सकता है.

इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य घरेलू निर्माण बढ़ाने, आयात पर निर्भरता कम करने और देश के पिछड़े इलाकों में निवेश करके निर्यात बढ़ाते हुए 'आत्मनिर्भर भारत' का सपना साकार करना है. ऐसी उम्मीद है कि इस कॉप्लेक्स की शुरुआत के साथ 5,000 रोजगार पैदा होंगे, जिसमें 1,600 प्रत्यक्ष रोजगार होंगे. 

कोल इंडिया दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खदान कंपनी है और भारत के कोयला उत्पादन में 80 फीसदी हिस्सा इसी कंपनी से आता है.

Zee Business Hindi Live TV यहां देखें