हिप ट्रांसप्लांट मामले में दवा तथा मेडिकल उपकरल बनाने वाली कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं. अब यह मामला सूचना आयोग पहुंच गया है. सूचना आयोग ने इससे जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कंपनी को कूल्हे बदलने के काम आने वाले उपकरणों के आयात की मंजूरी के लिए देश के दवा नियामक को दिए गए दस्तावेजों का आरटीआई के तहत सार्वजनिक किए जाने का आदेश दिया है. जबकि कंपनी इस पर अपना विरोध दर्ज करा चुकी है. 

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केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) कंपनी की आपत्ति से सहमत नहीं है. 

उल्लेखनीय है कि कंपनी के उपकरण दोषपूर्ण पाये जाने के बाद विवाद शुरू हो गया है. कहा जा रहा है कि अमेरिका समेत कई देशों में प्रतिबंधित के बावजूद ये उपकरण भारत में इस्तेमाल के लिए मंगाए गए. इनका आयात एवं विपणन जॉनसन एंड जानसन की सहयोगी कंपनी डीपुई मेडिक प्राइवेट लिमिटेड के जरिए किया गया है. 

हालांकि सीआईसी ने कहा कि उसे इन दस्तावेजों का खुलासा करने का निर्देश देने में कोई बाधा नहीं दिखती.

आरटीआई आवेदक मुकेश जैन ने कहा कि दवा नियामक केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने इस मामले में वृहद सार्वजनिक हित के प्रावधान पर गौर नहीं किया. जैन ने ही आरटीआई कानून के तहत सीडीएससीओ से यह सूचना मांगी थी. इसमें उन्होंने इन्डेम्निटी (क्षतिपूर्ति) उपबंध की प्रति भी मांगी थी जिसके तहत उत्पाद की त्रुटि के मामले में आपूर्तिकताओं की जिम्मेदारी तय होती है. केंद्रीय सूचना आयुक्त यशोवर्धन आजाद ने इस संबंध में आपत्तियों को खारिज किया है. 

बता दें कि इससे पहले जॉनसन ऐंड जॉनसन उन मरीजों को मुआवजा देने को तैयार हो गई जिनको उसके खराब उपकरणों के कारण परेशानी झेलनी पड़ी थी.

जॉनसन एंड जॉनसन ने वैश्विक स्तर पर 2010 में किए गए सभी ट्रांसप्लांट को वापस लेने का फैसला किया था. कंपनी ने अमेरिका के 8 हजार मरीजों को 2.5 बिलियन डॉलर की राशि का भुगतान किया. भारत के मरीजों को कंपनी ने 20 लाख रुपये तक का मुआवजा देने का फैसला किया है.

(इनपुट एजेंंसी से)