पता नहीं आपने सुना है या नहीं, लेकिन दिल्ली के दो बड़े रेस्टोरेंट चेन आपस में बटर चिकन और दाल मखनी को लेकर आपस में भिड़े हुए हैं और मामला दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंच गया है. मामला दरियागंज रेस्टोरेंट चेन और जाने-माने रेस्टोरेंट चेन मोती महल के बीच चल रहा है. और पूरा बखेड़ा बटर चिकन और दाल मखनी की उत्पत्ति को लेकर है. कई सालों से दोनों रेस्तरां चेन दावा करती रही हैं कि उन्होंने ‘बटर चिकन’ और ‘दाल मखनी’ का ईजाद किया है. इस साल की शुरुआत में, मोती महल ने दोनों व्यंजनों का श्रेय लेने और उनसे संबंधित होने का दावा करने के लिए दरियागंज पर मुकदमा दायर किया था. वैसे ये मामला तो पहले से चल रहा है लेकिन दरियागंज ने अब मानहानि के आरोप में हाईकोर्ट का रुख किया है. 

दरियागंज गया दिल्ली हाईकोर्ट

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दरियागंज रेस्तरां चेन ने 'बटर चिकन' की उत्पत्ति के बारे में एक अखबार के इंटरव्यू में मोती महल के मालिकों की कुछ कथित अपमानजनक टिप्पणियों के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है. दरियागंज ने अदालत में दाखिल अपनी अर्जी में लेख में ‘‘अपमानजनक’’ बयानों के बारे में चिंता जताई जो पहले ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ में प्रकाशित हुआ और फिर अन्य वेबसाइटों द्वारा प्रसारित और पुन: मुद्रित किया गया. दरियागंज ने तर्क दिया है कि लेख में प्रकाशित टिप्पणी उसकी रेस्तरां श्रृंखला की प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं.

अर्जी में आरोप लगाया गया है कि बयानों ने न केवल उनके व्यवसाय को अपमानित किया, बल्कि मुकदमे पर निष्पक्ष निर्णय को भी पूर्वाग्रहित किया, और इसलिए उन्हें वापस लेने और हटाने के लिए दूसरे पक्ष द्वारा तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए. मोती महल के मालिकों ने उनके हवाले से की गई टिप्पणियों से खुद को अलग करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि लेख में व्यक्त किए गए भाव उनके प्रत्यक्ष संवाद या इरादों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं.

जनवरी में टैगलाइन को लेकर कोर्ट में हुई थी सुनवाई

मोती महल ने प्रतिष्ठित भारतीय पाक व्यंजनों - बटर चिकन और दाल मखनी विकसित करने का असली दावेदार का हक पाने के मुद्दे पर जनवरी में दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था. मोती महल को दरियागंज रेस्तरां द्वारा "बटर चिकन और दाल मखनी के आविष्कारक" टैगलाइन का उपयोग किए जाने पर आपत्ति है. मोती महल का आरोप है कि दरियागंज रेस्तरां दोनों रेस्तरांओं के बीच आपसी तालमेल होने का भ्रम फैला रहा है, जबकि असलियत में ऐसा नहीं है. मोती महल के मालिक ने यह दावा करते हुए मुकदमा दायर किया था कि उनके पूर्ववर्ती स्वर्गीय कुंदन लाल गुजराल ने ‘बटर चिकन’ और ‘दाल मखनी’ का आविष्कार किया था, जबकि दरियागंज दो व्यंजनों की उत्पत्ति पर ‘लोगों को गुमराह’ कर रहा है. उन्होंने तर्क दिया कि प्रश्न एक ‘संपादकीय परिप्रेक्ष्य’ में थे और उन्हें इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

जनवरी में मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने की थी. उन्होंने दरियागंज रेस्तरां के मालिकों को समन जारी किया था और उन्हें एक महीने के भीतर लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था. इसके अलावा, उन्होंने अंतरिम निषेधाज्ञा के लिए मोती महल के आवेदन पर नोटिस जारी किया और सुनवाई के लिए 29 मई की तारीख तय की.

क्यों बढ़ा विवाद?

मामले में विवाद तब बढ़ गया, जब मोती महल के मालिकों की ओर से दिए गए बयान, जो शुरू में वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित हुए और बाद में अन्य मीडिया आउटलेट्स की ओर से प्रसारित किए गए. इन बयानों को दरियागंज रेस्तरां ने अपनी प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक माना. आरोपों के जवाब में मोती महल के मालिकों ने दावा किया है कि उनके बयान "संपादकीय नजरिये" से पेश किए गए थे और इसके लिए उन्हें सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. जस्टिस नरूला ने अब मोती महल के मालिकों को लेखों में प्रकाशित विवादित बयानों से खुद को दूर रखने के अपने प्रयास की पुष्टि करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है.

जस्टिस नरूला ने कहा, "वादी (मोती महल मालिकों) को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है, जिसमें दावों को विस्तार से बताया गया हो और प्रकाशित लेखों में विवादित बयान से खुद को दूर करने के अपने प्रयास की पुष्टि की गई हो. इसे आज से दो सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाए." अदालत में दायर दरियागंज रेस्तरां की अर्जी में कथित अपमानजनक टिप्पणियों का उसकी प्रतिष्ठा और व्यावसायिक हितों पर हानिकारक प्रभाव पड़ने की बात कही गई है.

(एजेंसी से इनपुट)