रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve bank of India) ने NBFCs और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को बड़ी राहत दी है. RBI ने स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) के जरिए स्पेशल लिक्विडिटी स्कीम का ऐलान किया है.  दरअसल, गैर बैंकिग वित्तीय कंपनियों काफी समय से लिक्विडिटी की समस्या जूझ रही थी. मई महीने में सरकार की तरफ से NBFCs के लिए 30 हजार करोड़ रुपए की स्पेशल लिक्विडिटी स्कीम का भी ऐलान किया गया था. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

SBI की सब्सिडियरी SBI कैप ने SLS ट्रस्ट नाम से SPV बनाया है. इसके जरिए ही NBFCs और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को लिक्विडिटी स्कीम में जोड़ा जाएगा. हालांकि, स्कीम से जोड़ने के लिए कुछ शर्तें तय की गई हैं. इस स्कीम का फायदा भी चुनिंदा कंपनियों को ही दिया जाएगा.

किसे मिलेगा स्कीम से फायदा?

- सभी NBFC और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को फायदा मिलेगा. CIC वाली NBFC को इससे बाहर रखा जाएगा.

- 31 मार्च 2019 तक CRAR 15% से कम नहीं होना चाहिए.

- 31 मार्च 2019 तक नेट NPA 6% से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

- 2017-18 और 2018-19 में से कंपनी किसी एक साल में मुनाफे में रही हो.

- 1 अगस्त 2018 से पहले SMA 1 या SMA 2 कैटेगरी में न गई हो.

- SEBI रजिस्टर्ड रेटिंग एजेंसी से इनवेस्टमेंट ग्रेड की रेटिंग मिली हो.

- SPV की जो भी को-लैटरल की शर्तें होंगी वो माननी होंगी.

क्या शर्तें और कैसे काम करेगी स्कीम

- NBFCs/HFCs से SPV कमर्शियल पेपर, NCDs खरीदेगी.

- कमर्शियल पेपर,NCD की मैच्योरिटी  3 माह से अधिक न बची हो.

- 30 सितंबर 2020 के बाद जारी कमर्शियल पेपर, NCD मान्य नहीं.

- SPV 30 सितंबर 2020 के बाद कोई नया CP, NCD नहीं खरीदेगी.

- SPV सभी कमर्शियल पेपर, NCD की रिकवरी दिसंबर तक करेगी.

ज़ी बिज़नेस LIVE TV यहां देखें

सरकार के फैसले के मुताबिक, भारतीय स्टेट बैंक की सहायक कंपनी SBI Cap इसके मैनेजमेंट के लिए एक SPV (SLS ट्रस्ट) बनाएगी.  योजना के तहत SPV सिर्फ NBFC/HFC से अल्पकालिक कागजात खरीदेगा, जिसका इस्तेमाल मौजूदा देनदारियों को निपटाने के लिए करेगा. इन इंस्ट्रूमेंट्स में CP और NCDs शामिल होंगे. इनमें तीन महीने से ज्यादा की मैच्योरिटी वाले नहीं होने चाहिए और इन्वेस्टमेंट ग्रेड की रेटिंग होनी चाहिए.

45,000 करोड़ रुपए की आंशिक क्रेडिट गारंटी मिलेगी

सरकार की तरफ से NBFCs को 45,000 करोड़ रुपए की आंशिक क्रेडिट गारंटी दी जाएगी. इसमें AA पेपर्स और इसके नीचे के रेटिंग वाले पेपर्स को भी कर्ज मिलेगा. अनरेटेड पेपर्स के लिए भी इसमें प्रावधान किया गया है. इससे नई लेंडिंग को बढ़ावा मिलेगा.

इंडस्ट्री और एक्सपर्ट्स का नज़रिया

फाइनेंशियल इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल के चेयरमैन रमन अग्रवाल का मानना है कि स्कीम से इंडस्ट्री का बहुत भला नहीं होगा. क्योंकि, 3 महीने की मियाद बहुत छोटी है और रकम का इस्तेमाल केवल देनदारियों को चुकाने के लिए ही किया जा सकेगा. वहीं, मौजूदा समय में 2-3 साल की मियाद वाली राहत चाहिए ताकि इंडस्ट्री का फोकस केवल देनदारियों से निपटने के अलावा आगे कर्ज़ देने में भी किया जा सके. सरकार भी चाहती है कि आगे कर्ज़ बांटा जाए ताकि इकोनॉमी का पहिया घूमे. इस मामले पर एक राय ये भी है कि इसका फायदा NBFCs और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के मुकाबले म्यूचुअल फंड्स को हो सकता है. क्योंकि, वो फंसी हुई स्कीम के पेपर स्पेशल पर्पज़ व्हीकल को बेचकर मुक्ति पा जाएंगे.