सरकारी क्षेत्र के बैंकों को आने वाले 5-6 महीने के दौरान 1,200 अरब रुपये की जरूरी पूंजी की आवश्यकता है. इसमें से बड़ा हिस्सा खुद सरकार को उपलब्ध कराना होगा क्योंकि इनमें से ज्यादातर बैंकों का बाजार पूंजीकरण कमजोर है. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है. क्रिसिल के वरिष्ठ निदेशक कृष्णन सीतारमन ने मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों के लिए जरूरी यह राशि चालू वित्त वर्ष के बजट में रखी गई 53,000 करोड़ रुपये की राशि के मुकाबले दोगुने से अधिक है.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि सरकार बैंकों की इस पूंजी आवश्यकता को पूरा करती है तो इससे उसके वित्तीय गणित पर और दबाव बढ़ जाएगा और चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 प्रतिशत पर रखने की उसकी क्षमता प्रभावित होगी. सरकार पहले इस मामले में अक्टूबर अंत तक राजकोषीय घाटे के अनुमानित लक्ष्य का 95 प्रतिशत का इस्तेमाल कर चुकी है.

 

 

यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब सरकार रिजर्व बैंक से कह रही है कि उसे बैंकों की न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं को वैश्विक नियमों के अनुरूप कम रखना चाहिए. लेकिन केंद्रीय बैंक सरकार की इस सलाह को लेकर संतुष्ट नहीं है. ऐसा समझा जाता है कि केंद्रीय बैंक सरकार की उस मांग को भी खारिज कर दिया जिसमें सरकार ने केंद्रीय बैंक से उसके 9,500 अरब रुपये के आरक्षित कोष में से 3,600 अरब रुपये हस्तांतरित करने को कहा है. सरकार इस राशि से बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराना चाहती है.