सरकारी बैंकों (Government Banks) को आने वाले दिनों में फिर से सरकार से एक्स्ट्रा पूंजी की जरूरत हो सकती है. देशभर में काफी दिनों से चल रहे लॉकडाउन के चलते सरकारी बैंकों की गैर-निष्पादित राशि (NPA) यानि फंसे हुए कर्ज में दो से चार प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. अगर हालात ऐसे रहे तो सरकार पर वित्तीय वर्ष 2020-21 में बैंकों में 15 अरब डॉलर (1125 अरब रुपये) के रीकैपिटलाइजेशन (Recapitalization) का दबाव बढ़ सकता है. पीटीआई की खबर के मुताबिक, एक विदेशी ब्रोकरेज कंपनी ने मंगलवार को यह बात कही.

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बैंक ऑफ अमेरिका के विश्लेषकों का मानना है कि इन्सेंटिव मेजर्स (प्रोत्साहन उपायों) में होने वाले खर्च, कम टैक्स हासिल होना और विनिवेश में भारी कमी के चलते सरकार का एकीकृत राजकोषीय घाटे का लक्ष्य (Target of consolidated fiscal deficit) दो प्रतिशत तक बढ़ सकता है. ऐसे में सरकार को बैंकों में और पूंजी डालने के लिए संसाधन जुटाने के लिए नए तरीके तलाशने होंगे.

सरकार इसके लिए रीकैपिटलाइजेशन बॉन्ड जारी कर सकती है या फिर इसके लिए रिजर्व बैंक के 127 अरब डॉलर के रिजर्व का सहारा लिया जा सकता है. सरकारी बैंकों को जरूरी पूंजी उपलब्ध कराने में रिजर्व बैंक के इस रिजर्व फंड में भी कमी आ सकती है.

विश्लेषकों के बीच इस बात को लेकर करीब-करीब आम सहमति है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते बैंकों की सकल गैर-निष्पादित राशि (NPA) में बढ़ोतरी होगी.

ब्रोकरेज कंपनी ने कहा है कि एनपीए में दो से चार प्रतिशत की बढ़ोतरी से सरकार को बैंकों के पूंजी आधार को मजबूत बनाने के लिए सात से 15 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी. यानी करीब 525 अरब रुपये से लेकर 1,125 अरब रुपये तक की जरूरत होगी.

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ब्रोकरेज कंपनी ने कहा है कि रीकैपिटलाइजेशन बॉन्ड हालांकि, इसका ऑप्शन हो सकता है. पहले भी इस साधन का इस्तेमाल किया जा चुका है और बैंकों को इसका फायदा मिला है.