अगर आप लोन लेने की प्‍लानिंग कर रहे हैं तो आपका सिबिल स्‍कोर बेहतर होना चाहिए, ये बात सभी लोग जानते हैं. लेकिन कुछ और फैक्‍टर्स भी हैं, जो आपके लोन को प्रभावित करते हैं. इन्‍हीं में से एक है डीटीआई रेश्‍यो यानी डेट टू इनकम रेश्‍यो (Debt to Income- DTI). इसके बारे में ज्‍यादातर लोगों को पता नहीं होता. अगर आपका डीटीआई रेश्‍यो बैलेंस नहीं है, तो भी आपको लोन मिलने में दिक्‍कतें आ सकती हैं. आइए जानते हैं, ये होता क्‍या है और कैसे इसे कैलकुलेट किया जाता है.

क्‍या होता है Debt to Income Ratio

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दरअसल क्रेडिट स्कोर इस बात को दिखाता है कि ग्राहक ने पुराने लोन कैसे चुकाए. लेकिन डेट टू इनकम रेश्‍यो ग्राहक की लोन उतारने की क्षमता के बारे में बताता है. इसे मासिक आधार पर निकाला जाता है. इसके लिए व्‍यक्ति के सभी तरह के कर्ज जैसे होम लोन, कार लोन, क्रेडिट कार्ड पेमेंट या किसी भी अन्‍य तरह का लोन जो पहले से चल रहा है, उन सबका कुल योग निकाला जाता है और उसका मासिक इनकम से भाग दिया जाता है. इससे डीटीआई रेश्‍यो सामने आ जाता है और ये अंदाजा लगाया जाता है कि ग्राहक लोन चुकाने की स्थिति में है या नहीं और उसे कितना अमाउंट लोन के रूप में दिया जा सकता है.

उदाहरण से समझिए

मान लीजिए कि आपकी मासिक सैलरी 60,000 रुपए है. आप पर एक होम लोन और एक कार लोन चल रहा है. हर महीने आपके होम लोन की किस्‍त 18,000 रुपए जाती है और कार लोन की किस्‍त 6,000 रुपए जाती है. इस तरह कुल 24,000 रुपए आपके लोन की किस्‍त चुकाने में हर महीने कट जाते हैं. इस तरह आपका डेट-इनकम अनुपात 40% होता है, जो कि ज्‍यादा है और ये आपके लोन के विकल्‍प को प्रभावित कर सकता है. आपका डीटीआई रेश्‍यो 36% से कम होना चाहिए. डीटीआई अनुपात जितना ज्‍यादा कम होगा, इससे इनकम और कर्ज के बीच उतना ही बेहतर संतुलन हो पाएगा. 

कैसे बेहतर करें ये रेश्‍यो

डीटीआई रेश्‍यो को बेहतर करने का तरीका है कि आप अपनी इनकम को और बेहतर करें. अगर आप प्राइवेट सेक्‍टर में नौकरी करते हैं, तो साइड बाय साइड इनकम का कोई और जरिया भी बनाएं या फिर जॉब को बदलकर अपने पैकेज को बेहतर करें. इसके अलावा आप पहले से चल रहीं अपनी देनदारियां जल्‍द से जल्‍द चुकाएं. इससे आपका डीटीआई बेहतर हो सकता है.

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