कोरोनावायरस संकट के चलते शेयर बाजारों में उतार-चढ़ाव और संपत्तियों के कम मूल्यांकन के साथ ही बैंकों की फंसी संपत्ति (NPA) में बढ़ोतरी को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के दौरान पब्लिक सेक्टर के किसी भी बैंक (Public Sector Bank) में प्राइवेटाइजेशन (Privatisation) की दिशा में पहल होने की संभावना बेहद कम है. सूत्रों ने यह कहा है. पीटीआई की खबर के मुताबिक, फिलहाल पब्लिक सेक्टर के चार बैंक आरबीआई की प्रोम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) के दायरे में हैं. इस वजह से उन पर लोन देने और दूसरी तरह की पाबंदियां हैं.

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सूत्रों ने कहा कि ऐसे में इन बैंकों- इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI), यूको बैंक (UCO BANK) और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (UBI) को बेचने का कोई मतलब नहीं है. मौजूदा हालात में प्राइवेट सेक्टर के बैंक से कोई भी इन्हें लेने को इच्छुक नहीं होगा. उसने कहा कि सरकार स्ट्रैटेजिक सेक्टर की इन यूनिट को संकट के समय जल्दबाजी में नहीं बेचना चाहेगी.

उल्लेखनीय है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) कृष्णमूर्ति सुब्रमणियम (Krishnamurthy Subramaniam) ने पिछले सप्ताह बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का संकेत दिया था. प्राइवेटाइजेशन की पॉलिसी के बारे में उन्होंने कहा कि बैंक रणनीतिक क्षेत्र का हिस्सा होगा और सरकार रणनीतिक तथा गैर-रणनीतिक क्षेत्रों को चिन्हित करने की दिशा में काम कर रही है.

मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में सभी सरकारी उपक्रमों का निजीकरण किया जाएगा. रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को एक से चार तक सीमित रखा जाएगा. रणनीतिक रूप से सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र में निजी क्षेत्र से जहां कॉम्पिटिशन है, वहां ठीक है. जहां नहीं है, उसे किया जाएगा. बैंक रणनीतिक क्षेत्र है, काम जारी है. 

सूत्रों ने कहा कि किसी बैंक की पूरी बिक्री तो छोड़िये किसी सरकारी बैंक में शायद ही हिस्सेदारी बिक्री के लिए कदम उठाया जाएगा. इसका कारण इस समय इनका सही मूल्यांकन होना मुश्किल है. उसने यह भी कहा कि जरूरी नियामकीय जरूरतों को पूरा करने के लिए लगातार पूंजी डाले जाने से कुछ सरकारी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से ऊपर निकल गई है.

सूत्रों ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने न केवल सरकारी बैंकों में सुधार की प्रक्रिया को रोका है बल्कि इसका निजी क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय सेहत पर भी विपरीत असर पड़ने जा रहा है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बेहतर वित्तीय स्थिति को लेकर उत्साहित वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल फरवरी में पेश 2020-21 के बजट में बैंकों में कोई नई पूंजी डाले जाने की घोषणा नहीं की. हालांकि, सरकार पिछले कुछ साल से सरकारी बैंकों को मजबूत करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही है.

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बड़े स्तर पर मर्जर की प्रक्रिया इस साल अप्रैल में पूरी हुई. इसके तहत ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स (OBC) और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का मर्जर पंजाब नेशनल बैंक में, सिंडिकेट बैंक का केनरा बैंक में, आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में तथा इलाहबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय हुआ.

इससे पहले, एक अप्रैल 2019 को विजया बैंक और देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में मर्जर हुआ था. इस मर्जर प्रोसेस के बाद अब सरकारी क्षेत्र के सात बड़े और पांच छोटे बैंक बचे हैं. वहीं 2017 में सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंक थे.