चेक बाउंस (Cheque Bounce) के मुद्दे पर इन दिनों जोरदार चर्चा है, क्योंकि सरकार चेक बाउंस को आपराधिक मामलों (Criminal Case) से सिविल केस (Civil Case) में शिफ्ट करने की तैयारी में है. इस बारे में एक प्रस्ताव दिया गया है. लेकिन कारोबारी इस नियम को बदलने को लेकर नाराज हैं. मौजूदा नियम में चेक बाउंस को वर्ष 1988 से ही आपराधिक मामलों की कैटेगरी में रखा गया है. 

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कारोबारी इसके पक्ष में बिल्कुल नहीं

चेक बाउंस के मामले को सिविल मामले की कैगेटरी में लाने की इस पहल पर कारोबारियों ने आपत्ति जताई है. यूसीपीएमए के चेयरमैन डी एस चावला कहते हैं कि चेक फेल होने की सूरत में क्रिमिनल केस लगाया जाता है. इससे जुड़े कानून जुर्माने से लेकर कैद तक का प्रावधान था. लोगों में डर था. 

धोखाधड़ी में कमी आई थी. लेकिन नया प्रस्ताव जिसमें इस अपराध को सिविल केस में लाने पर विचार हो रहा है, इसे बंद कर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि सिविल कोर्ट में लाखों केस 20 साल से भी ज्यादा समय से पड़े हैं. ऐसा होने पर लोगों का डर खत्म हो जाएगा और धोखाधड़ी काफी बढ़ जाएगी.

कारोबारियों का कहना है कि नियम बदलने से बैंकों और एनबीएफसी को भी बड़ा नुकसान हो सकता है. खासकर छोटे और मझोले कारोबार में आज भी चेक की अहमियत ज्यादा है. कारोबारियों का कहना है कि बदलाव से कारोबार में भरोसा खत्म हो जाएगा. यहां कहना है कि अगर कोई 5 लाख का चेक बाउंस हो जाता तो वह पांच साल केस लड़ेंगे या अपना कारोबार संभालेंगे. ऐसे में कारोबारी का फोकस कारोबार पर नहीं रह पाएगा. 

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चेक बाउंस के मामले में बदलाव का असर लीगल व्यू से भी निगेटिव होगा. एक सीनियर वकील का कहना है कि अगर आप इसे आपराधिक कैटेगरी से सिविल कैटेगरी में लाते हैं तो इससे मुझे नहीं लगता कि कोर्ट का बोझ कम होगा. अगर चेक बाउंस को लेकर नियम बदले गए तो बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी. आज जो जेल जाने का डर है, वह खत्म हो जाएगा.