ऑल इंडिया बैंक इम्प्लॉइज एसोसिएशन (AIBEA) ने 2,426 लेनदारों की एक सूची जारी की, जिन्होंने जानबूझकर अपने बैंक लोन पर 14.7 खरब रुपए से ज्यादा का डिफॉल्ट किया है. एआईबीईए के मुताबिक, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) पब्लिक सेक्टर के 17 बैंकों की लिस्ट में इस मामले में पहले नंबर पर है, जिसके यहां विलफुल डिफॉल्टर की संख्या 685 है, जिनके ऊपर 43,887 करोड़ रुपए बकाया हैं. IANS की खबर के मुताबिक, एसबीआई के बाद पंजाब नेशनल बैंक (325 डिफॉल्टर, 22,370 करोड़ रुपए बकाया), बैंक ऑफ बड़ौदा (355 डिफॉल्टर, 14,661 करोड़ रुपए बकाया), बैंक ऑफ इंडिया (184 डिफॉल्टर, 11,250 करोड़ रुपए बकाया), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (69 डिफॉल्टर, 9,663 करोड़ रुपए बकाया) और दूसरे बैंक हैं.

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पंजाब एंड सिंध बैंक के यहां सिर्फ छह विलफुल डिफॉल्टर हैं, जिन्होंने 255 करोड़ रुपए का दिवालिया किया. एआईबीईए के मुताबिक, टॉप 10 डिफॉल्टरों ने 32,737 करोड़ रुपए का डिफाल्ट किया है (बकाया और बट्टे खाते में). इस लिस्ट को जारी करते हुए एआईबीईए के महासचिव सी.एच. वेंकटाचलम ने एक बयान में कहा कि हमारे बैंकों के सामने एक मात्र बड़ी समस्या प्राइवेट कंपनियों और कॉरपोरेट्स द्वारा लिए गए लोन का भारी मात्रा में बैड लोन बनना है.

वेंकटाचलम ने कहा, अगर उनपर कड़ी कार्रवाई कर के पैसे को रिकवर किया जाए, तो हमारे बैंक देश के विकास में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. डिफॉल्टरों को रियायत देने और जनता को उसकी जमा राशि पर ब्याज दर घटाने और सर्विस चार्ज बढ़ाने की परंपरा बंद होनी चाहिए. विलफुल डिफॉैंल्टरों की लिस्ट में गीतांजलि जेम्स लिमिटेड, किंगफिशर एयरलाइंस, रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड, विनसम डायमंड्स एंड ज्वेलरी लिमिटेड, स्टर्लिग बायोटेक लिमिटेड और दूसरी कंपनियां शामिल हैं.

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उन्होंने कहा कि 19 जुलाई, 1969 को तत्कालीन भारत सरकार ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, और उसके बाद से इन बैंकों ने एक नया रास्ता और सामाजिक दृष्टिकोण तैयार करना शुरू किया था. वेंकटाचलम के मुताबिक, बैंकों की शाखाएं 1969 में 8,200 से बढ़कर आज 1,56,349 हो गई हैं. प्रॉयरिटी सेक्टर लैंडिंग इस समय 40 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीयकरण से पहले यह शून्य थी.

उन्होंने यह भी कहा कि जमा और एडवांसेस 1969 में क्रमश: 5,000 करोड़ रुपए और 3,500 करोड़ रुपए थे, जो अब बढ़कर 138.50 लाख करोड़ रुपए और 101.83 लाख करोड़ रुपये रुपए हो गए हैं.