Air India Pilot issues: देश का एविएशन सेक्टर लगतार नई ऊंचाइयां छू रहा है, महामारी के तूफान का दिलेरी से सामना करने वाले पायलटों के लिए एक आशाजनक परिदृश्‍य है. हालामकि, ग्राउंड के नीचे, सब कुछ सही नहीं है. खबर के मुताबिक, पायलटों और एयरलाइन प्रबंधन के बीच संबंध तेजी से तनावपूर्ण होते जा रहे हैं, खासकर, टाटा ग्रुप के स्वामित्व वाली एयर इंडिया (Air India) के भीतर, जिसके स्वामित्व में लगभग दो साल पहले बदलाव हुआ था.

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जब से टाटा संस (Tata Sons) ने एयर इंडिया का अधिग्रहण किया है, एयरलाइन के पायलटों और नए प्रबंधन के बीच संबंधों में खटास अब तक के उच्‍चतम स्तर पर पहुंच गई है. यह कोई रहस्य नहीं है कि वरिष्ठ पायलटों को अपने पेशे की अनूठी प्रकृति को देखते हुए, अक्सर उन संगठनों के भीतर अपनेपन की भावना तलाशने के लिए संघर्ष करना पड़ता है जिनमें वे सेवा करते हैं.

क्यों शुरू हुआ टकराव

एयर इंडिया के वरिष्ठ पायलट अपनी शिकायतों के बारे में मुखर रहे हैं, अक्सर व्हाट्सएप जैसे प्लेटफार्मों पर अपनी चिंताओं को साझा करते हैं. अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि पायलटों और चालक दल के सदस्यों की यह स्थिति इन महत्वपूर्ण कर्मचारियों को अलग-थलग करने के उद्देश्य से जानबूझकर अपनाई गई रणनीति है. हालांकि, एयरलाइन के अंदरूनी सूत्रों का आरोप है कि वरिष्ठ पायलटों को उनकी उच्च-रैंकिंग भूमिकाओं से हटा दिया गया, जिसमें संचालन प्रमुख जैसे पद भी शामिल थे, जिसके बाद प्रबंधन के साथ टकराव शुरू हो गया.

एयर इंडिया से कहां हुई चूक?

टाटा प्रबंधन ने सेवा की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन संगठन के भीतर गंभीर मुद्दों के समाधान की तत्काल आवश्यकता प्रतीत होती है. सिविल एविएशन मिनिस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि टाटा को नियंत्रण लेने के तुरंत बाद पुरानी प्रबंधन टीम को हटाकर एक नई टीम को नियुक्त करना चाहिए था. काम करने के अपने मौजूदा तरीकों के साथ बरकरार प्रबंधन को एक अस्थिर प्रभाव के रूप में देखा जाता है, जो एयरलाइन के भीतर अंदरूनी कलह को बढ़ावा देता रहता है.

एयर इंडिया लंबे समय से विभिन्‍न गुटों के अस्तित्व से पीड़ित है, जो अक्सर एयरलाइन की भलाई की बजाय स्व-हित से प्रेरित होते हैं. पुराने प्रबंधन को बरकरार रखने से अनजाने में ये विभाजन कायम हो गए हैं, जिससे विभिन्न कर्मचारी समूहों और प्रबंधन के बीच प्रतिकूल संबंध बढ़ गए हैं. दशकों के अनुभव वाले कई अंदरूनी सूत्रों का तर्क है कि निजीकरण के बाद से आंतरिक तानाबाना खराब हो गया है. उत्पाद, वित्तीय प्रदर्शन या कार्य वातावरण में सुधार के मामले में कुछ खास दिखाने लायक नहीं है.

पूर्व पायलट ने सोशल मीडिया पर खोली पोल

पूर्व पायलट शक्ति लुंबा ने एक्स पर पोस्ट किया, "एयर इंडिया में बस इतना हुआ है कि एक प्रवासी सीईओ और एक प्रवासी सुरक्षा निदेशक मिला है, जिनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है. टाटा ने आईएएस बाबू की जगह टीएएस बाबू को रख लिया है. वरिष्‍ठ प्रबंधन को बरकरार रखा गया है जिनका चयन योग्‍यता की बजाय वरिष्‍ठता के आधार पर हुआ था. खेल, गुटबाजी, कलह और आंतरिक राजनीति पहले की तरह जारी है."

उन्‍होंने एक्‍स पर लिखा, “(कर्ज में डूबी) एयरइंडिया को खरीदने के बदले टाटा समूह को सेंट्रल विस्ता, नए सिरे से एक हवाई अड्डा (या तो नोएडा या नवी मुंबई में) बनाने और विमानन तथा रक्षा क्षेत्र में अन्य रसदार व्यवसायों का अनुबंध मिला. इन फायदों की तुलना में एयर इंडिया का नुकसान कुछ भी नहीं है.''

चूंकि भारत में विमानन उद्योग फल-फूल रहा है, एयर इंडिया के भीतर स्थिति गंभीर बनी हुई है. यह असहमति एक निराश अल्पसंख्यक की आवाज है या कार्यबल की आम सहमति यह अभी देखा जाना बाकी है. इस बीच, एयरलाइन आंतरिक कलह से जूझ रही है, और वरिष्ठ पायलटों तथा प्रबंधन के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं, जो कि उभरते उद्योग की बाहरी उपस्थिति से बहुत दूर है.

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