कई एयरलाइन अपने हवाई यात्रियों को इन फ्लाइट कनेक्टिविटी (विमान में मोबाइल सेवा) मुहैया कराना चाहती हैं लेकिन इससे हवाई यात्री को एयर फेयर पर करीब 1000 रुपए तक ज्‍यादा देने पड़ सकते हैं. इसका कारण सैटेलाइट बैंडविड्थ का ऊंचा शुल्क है. इंडस्‍ट्री के एक अधिकारी का कहना है कि इससे यह सेवा 30 से 50 गुना तक महंगी हो जाएगी और यात्रियों को दो घंटे की यात्रा के दौरान 700 से 1,000 रुपये खर्च करने होंगे. 

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ब्रॉडबैंड प्रौद्योगिकी कंपनी हजेज इंडिया (Hughes India) के मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी (CTO) के कृष्णा ने पीटीआई से कहा कि दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में भारत में सैटेलाइट बैंडविड्थ शुल्क 7 से 8 गुना अधिक हैं. इसकी वजह यह शर्त है कि बैंडविड्थ की खरीद सिर्फ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) से की जा सकती है. 

कृष्णा ने कहा, ‘‘भारत में यात्री दो घंटे की उड़ान के लिए इंटरनेट का 50 गुना ऊंचा दाम नहीं चुकाएंगे. यह काफी सस्ता होना चाहिए और ऐसा होने के लिए एक मुक्त आकाश तंत्र की जरूरत है. आप यह अंकुश नहीं लगा सकते कि सिर्फ भारतीय सैटेलाइट ही क्षमता उपलब्ध करा सकती है. एकाधिकार की नीति काम नहीं करेगी. यदि इन मुद्दों को हल नहीं किया गया तो नीति बेकार हो जाएगी.’’ 

हजेज ने उड़ान और जहाज से यात्रा के दौरान मोबाइल सेवा के लाइसेंस के लिए आवेदन किया है. इसमें भारत के आकाश क्षेत्र और जल क्षेत्र में मोबाइल सेवा उपलब्ध कराई जा सकेगी. कृष्णा ने कहा कि उड़ान और समुद्र में मोबाइल सेवा के काम करने के लिए पर्याप्त सैटेलाइट क्षमता उचित मूल्य पर उपलब्ध है.

उन्होंने कहा, ‘‘प्रति विमान निवेश छोटा नहीं है. उन्हें प्रति विमान 500 से एक हजार डॉलर का निवेश करना होगा. जब तक यात्री सेवा के लिए आगे नहीं आएंगे और रिटर्न की संभावना नहीं बनेगी. कोई भी भारतीय विमानन कंपनी या जहाजरानी कंपनी यह निवेश नहीं करेगी.’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘बैंडविड्थ का कुल हिस्सा सेवा की लागत का 70 से 80 प्रतिशत बैठेगा. फिलहाल मौजूदा शुल्क 700 से 1,000 रुपये हो, जो ज्यादातर लोग चुकाना नहीं चाहेंगे. वैश्विक स्तर पर उड़ान के दौरान मोबाइल सेवा का मॉडल कम से कम 10 प्रतिशत यात्रियों द्वारा सेवा के विकल्प को चुना जाता है. 

कृष्णा ने कहा कि इसका एक विकल्प विमान के टिकट में उड़ान के दौरान मोबाइल सेवा के शुल्क को जोड़ना है, लेकिन टिकटें पहले ही 4,000 से 5,000 रुपये के बीच हैं. ऐसे में उड़ान के दौरान सेवा के शुल्क को टिकट में जोड़ना आर्थिक रूप से व्यावहारिक मॉडल नहीं है.