CSIR-NIO Launches Underwater Vehicle: गोवा के समुद्र या बीच में अब कोरल रीफ यानी कि मूंगे की चट्टानों की निगरानी की जाएगी. इसके लिए CSIR ने NIO के साथ मिलकर एक अंडरवॉटर व्हीकल तैयार किया है. ये व्हीकल समुद्र के अंदर चलेगा. NIO यानी कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑशियोनोग्राफी ने बताया है कि ये व्हीकल समुद्र में 200 मीटर तक जा सकता है. ये व्हीकल 200 मीटर तक जाकर कोरल रीफ (Coral Reef) की निगरानी करेगी. गोवा स्थित सीएसआईआर-राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एनआईओ) ने मूंगे की चट्टानों (कोरल रीफ़) की निगरानी बढ़ाने के लिए पानी के नीचे चलने में समक्ष वाहन ‘सी-बॉट’ की शुरुआत की, जो कि उन्नत सुविधाओं वाला एक रोबोट है. 

समुद्र के अंदर चलेगा ये व्हीकल

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वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की महानिदेशक डॉ. एन. कलैसेल्वी ने रविवार को ‘सी-बॉट’ की शुरुआत की और कहा कि यह वाहन पानी के भीतर 200 मीटर की गहराई तक जा सकता है. 200 मीटर तक गहराई में जाकर कोरल रीफ की निगरानी करेगा. 

सीएसआईआर-एनआईओ परिसर में उन्होंने सोमवार को संवाददाताओं को बताया कि पानी के भीतर चलने में समक्ष वाहन बनाने की दिशा में यह रोबोट पहला कदम है, जो हिंद महासागर की गहराई में बारीकी से जांच कर सकता है. कलैसेल्वी ने कहा कि उनकी योजना इस वाहन को और विकसित करने की है जो समुद्र में हजारों मीटर की दूरी तय करने में सक्षम होगा.

क्लाइमेट कंट्रोल की वजह से बदल रहा रंग

सीएसआईआर-एनआईओ के निदेशक सुनील कुमार सिंह ने कहा कि ‘सी-बॉट’ समुद्र में मूंगे की चट्टानों पर निगरानी बनाए रखने में मदद करेगा. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण मूंगे की चट्टानों का प्राकृतिक रंग बदल रहा है. उन्होंने कहा कि इसमें लगे अलग-अलग सेंसर, अलग-अलग कैमरे पैरामीटर मापते हैं और इससे यह समझने में मदद मिल सकती है कि मूंगे इस तरह क्यों खत्म हो रहे हैं?

C-Bot नौसेना की भी करेगा मदद

शोधकर्ताओं की मदद करने के अलावा, ये सी-बॉट भारतीय नौसेना की भी मदद करेगी. सी-बॉट भारतीय नौसेना को नेविगेशन चैनलों की योजना बनाने और हाइड्रोथर्मल वेंट को बाहर निकालने में मदद करने के लिए बाथमेट्री अध्ययन करने में भी मदद करेगा, जहां भू-तापीय रूप से गर्म पानी समुद्र तल के नीचे गहराई से रिसता है

उन्होंने कहा कि रोबोट सक्रिय हाइड्रोथर्मल वेंट को खोजने में भी मदद करेगा जो समुद्र में बहुत सारे तत्वों का उत्सर्जन कर रहे हैं और सक्रिय जीवविज्ञान जो कई स्थानों पर चल रहा है, जैसे कई चरम वातावरण में जहां तापमान 400-500 डिग्री सेल्सियस है. ये व्हीकल रियल टाइम डाटा और फोटोग्राफ शेयर कर सकता है, जो शोधकर्ताओं के काफी मदद आने वाली है.