जब दांत रहेंगे तो चबाने के लिए चने नहीं होंगे. यही आलम आनेवाले सालों में देश में गाड़ियों को लेकर होने की आशंका जताई जा रही है.लेकिन तेल निर्यातक देशों के संघ OPEC की चेतावनी तो यही कहती है. भारत की तेल की मांग, जो कोरोनवायरस के दौरान पस्त थी, वो अब 2021 में 4.9 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुंचने की उम्मीद है. और मांग की रफ्तार इसी तरह कायम रही तो साल 2045 में ये मांग दो गुना तक बढ़कर 4.9 बैरल प्रति 11 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुंचने के कयास लगाए जा रहे हैं. और ये स्थिति बनती है तो आशंका जताई जा रही है कि 2045 में देश में गैसोलीन और डीजल मांग के मुकाबले केवल 58% ही आपूर्ति हो पाएगा. मतलब साफ है कि 40 प्रतिशत वाहनों को ईंधन मिल ही नहीं पाएगा.

EV के बाद भी ये स्थिति रहेगी

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OPEC के मुताबिक भारतीय मोटर चालक एक सदी की अगली तिमाही में गैसोलीन(पेट्रोल) और डीजल से चलने वाली कारों से दूर जाने के लिए संघर्ष करते दिखाई देंगे. साथ ही ये भी कहा गया है कि तकरीबन 40 फीसदी जो वाहन छूट जाएंगे उसका मतलब ये नहीं कि देश के इलेक्ट्रिक वाहनों से इस समस्या को दूर किया जा सकेगा. बावजूद इलेक्ट्रिकल वाहनों के बाद भी ये स्थिति पैदा हो सकती है.  पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन की नवीनतम दीर्घकालिक रिपोर्ट के अनुसार, डीजल और गैसोलीन अगले 25 वर्षों में भारत की तेल मांग का 58% हिस्सा बन जाएगा, जो अब 51% है. इसमें कहा गया है कि 200 मिलियन यात्री और वाणिज्यिक वाहनों के जुड़ने का मतलब है कि दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल खपत वाले देश में तेल की खपत में दो ईंधन का वर्चस्व बना रहेगा.

भारत पहले से 85% तेल निर्यात करता है

OPEC का ये अनुमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आने वाले दशकों में कार्बन दक्षता और गैस आधारित ईंधन के उपयोग और बिजली से चलने वाली गतिशीलता के माध्यम से भारत को ऊर्जा स्वतंत्र बनाने के उद्देश्य के विपरीत हैं. भारत जैसे देशों के लिए पेट्रोलियम की निरंतर आदत का मतलब है उस देश के लिए आयात पर अधिक निर्भरता होना जो पहले से ही अपना 85% तेल विदेशों से खरीदता है.