Sep 8, 2023, 02:37 PM IST

3 महीने में मालामाल बना देगी आलू की ये 4 किस्में, कम पानी में बंपर पैदावार

Sanjeet Kumar

आलू एक प्रमुख नगदी फसल है. हर घर में यह पूरे साल किसी न किसी रूप में सेवन किया जाता है. इसकी खपत ज्यादा है, इसलिए खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है

राष्ट्रीय स्तर पर करीब 90% आलू की खेती उत्तरी मैदानी भागों में की जाती है. यहां रबी के मौसम में आलू उगाया जाता है. जलवायु परिवर्तन के दौर में आलू उत्पादक किसान फसल के जैविक और अजैविक दोनों कारणों से जूझते हैं.

20% पानी की बचत

आमतौर पर एक किलो आलू पैदा करने के लिए 125 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है. लेकिन आलू की ये किस्मों में लगभग 80-100 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. इन किस्मों को उपजाने में लगभग 20% पानी की बचत होती है

आलू की खेती 15 से 25 सितंबर और इसकी पछेती बुवाई के लिए 15-25 अक्टूबर तक का समय सबसे बेहतर हता है. किसान आलू की कम पानी दक्षता वाली किस्मों की खेती के जरिए अधिक उत्पादन कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं

कुफरी थार-1

यह अच्छी उपज वाली और कम पानी वाले क्षेत्रों में आलू की प्रजाति है. यह कुफरी बहार और सीपी 1785 के बीच क्रॉस से एक क्लोनल चयन है. इसका गूदा सफेद-क्रीमी रंग का होता है.  यह किस्म 90 दिनों में 30-35 टन प्रति हेक्टेयर की उपज दे सकती है

कुफरी थार-2

यह किस्म उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और छत्तीसगढ़ के कम पानी वाले क्षेत्रों में उपजाने के लिए बेहतर है. एक किलो आलू पैदा करने के लिए इसमें 75 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. यह 30 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज देने में सक्षम है

कुफरी थार-3

यह किस्म हरियाणा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लिए बेहतर है. इसे कुफरी ज्योति और जेएन 2207 के बीच क्रॉस से विकसित किया गया है.  यह प्रति किलो 38 लीटर पानी की बचत करती है. यह किस्म पिछेता झुलसा रोग के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोधी है. यह 90  दिनों में तैयार हो जाती है और 32-34 टन प्रति हेक्टेयर की उपज ली जा सकती है

कुफरी गंगा

कुफरी गंगा को मैदानी क्षेत्रों में 75-90 दिनों में उपजाकर 35-40 टन प्रति हेक्टेयर की उपज ली जा सकती है. इसका गूदा सफेद-क्रीमी रंग का होता है. यह किस्म पिछेता झुलसा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है. इसकी भंडारण क्षमता अच्छी है