Rabindranath Tagore Jayanti 2023: भारत ही नहीं, इस देश के भी राष्ट्रगान के रचियता हैं गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर, जानें रोचक बातें
रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महाकवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक और चित्रकार थे. साहित्य में बेहतर काम करने के लिए उन्हें साल 1913 में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) से नवाजा गया था. आज गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती पर आपको बताते हैं कुछ रोचक बातें.
Rabindranath Tagore Jayanti Special: जब कभी भी हमारे देश का राष्ट्रगान 'जन गण मन' (National Anthem of India Jana Gana Mana) सुनाई देता है, हमारे रोम-रोम में देशभक्ति की भावना उमड़ने लगती है. इस राष्ट्रगान के गीत कानों में पड़ते ही लोग सम्मान में खड़े हो जाते हैं. ये राष्ट्रगान सभी भारतीयों को एक सूत्र में बांधने का काम करता है. हम सभी जानते हैं कि इस राष्ट्रगान को रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) ने लिखा था.
रबीन्द्रनाथ टैगोर एक महाकवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक और चित्रकार थे. साहित्य में बेहतर काम करने के लिए उन्हें साल 1913 में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) से नवाजा गया था. इस पुरस्कार को जीतने वाले वो पहले भारतीय थे. लेकिन क्या आपको पता है कि रबीन्द्र नाथ टैगोर ने सिर्फ भारत के ही राष्ट्रगान को नहीं लिखा, वे बांग्लादेश के राष्ट्रगान के भी रचियता हैं. आज गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती पर आपको बताते हैं कुछ रोचक बातें.
पहले दूर करें जयंती की डेट का कन्फ्यूजन
रबीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती को लेकर लोगों को काफी कन्फ्यूजन है. कुछ लोग इसे 7 मई को मानते हैं तो वहीं बंगाल में इसे आज 9 मई को मनाया जा रहा है. आपको बता दें कि ग्रेगोरियन कैलेंडर यानी अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को हुआ था. लेकिन बंगाल में उनकी जयंती बंगाली कैलेंडर के अनुसार मनाई जाती है. बंगाली कैलेंडर के हिसाब से उनका जन्म बंगाली महीने बोइशाख के 25वें दिन होता है. साल 2023 बोइशाख का 25वां दिन आज 9 मई मंगलवार को है.
बांग्लादेश के राष्ट्रगान के निर्माता
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भारत के राष्ट्रगान को लिखने के अलावा रबीन्द्रनाथ टैगोर ने बांग्लादेश के 'आमार सोनार बांगला' की भी रचना की थी. टैगोर ने ये गीत तब लिखा था जब 1905 बंगाल को अंग्रेज बांटने वाले थे. उन्होंने बंगाल के लोगों को एक सूत्र में बांधने के लिए इस कालजयी कविता को बांग्ला भाषा में लिखा था. देखते ही देखते ये कविता बंगाल के लोगों की जुबां पर चढ़ गई. 1971 में जब बांग्लादेश आजाद होकर अलग राष्ट्र बना, तो बांग्लादेश ने इसे नेशनल एंथम के तौर पर एडाप्ट कर लिया.
श्रीलंका का राष्ट्रगान भी टैगोर की कविता से प्रेरित
श्रीलंका के राष्ट्रगान 'श्रीलंका माता, श्रीलंका, नमो नमो नमो नमो माता' की रचना आनंद समाराकून ने की थी. लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि इस गीत का भी एक हिस्सा रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविता से प्रेरित है. दरअसल रबीन्द्रनाथ टैगोर ने पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन में विश्व भारती, यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी, जिसमें श्रीलंका (तब सीलोन) के आनंद समरकून अध्ययन करने के लिए आए थे. कहा जाता है कि आनंद समाराकून गुरुदेव से बहुत प्रभावित थे. भारत से लौटने के बाद ही उन्होंने रबीन्द्रनाथ टैगोर की एक कविता से प्रभावित होकर ये गीत लिखा और इस गीत को रबीन्द्र संगीत में कंपोज किया गया. ये गीत श्रीलंका में इतना लोकप्रिय हो गया कि इसे 1950 में राष्ट्रीय गान के तौर पर स्वीकार किया गया.
महात्मा गांधी से मिली थी 'गुरुदेव' की उपाधि
रबीन्द्र नाथ टैगोर कई विधाओं में निपुण थे. बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ टैगोर ने आठ वर्ष की उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था. उनकी लेखनी में वो ताकत थी, जो लोगों के अंतर्मन को स्पर्श कर लेती थी. इसको देखकर महात्मा गांधी ने रबीन्द्रनाथ टैगोर को 'गुरुदेव' की उपाधि दी थी. वहीं अंग्रेजी हुकूमत की ओर से टैगोर को 'नाइट हुड' यानी 'सर' की उपाधि से भी नवाजा था, लेकिन 1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद टैगोर ने इस उपाधि को लौटा दिया था.
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06:30 AM IST