National Sports Day 2023: विरोधी टीमें घबरा जाती थीं, ऐसे चलता था मेजर की हॉकी का जादू, जानें उनके जन्मदिवस पर अनकहे किस्से
Major Dhyan Chand Birthday: आज मेजर ध्यान चंद का जन्म दिन है. हर साल उनके जन्मदिन के मौके पर भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है. आज उनके जन्म दिवस पर जानिए उनके जीवन से जुड़े रोचक किस्से.
विरोधी टीमें घबरा जाती थीं, ऐसे चलता था मेजर की हॉकी का जादू, जानें उनके जन्मदिवस पर अनकहे किस्से
विरोधी टीमें घबरा जाती थीं, ऐसे चलता था मेजर की हॉकी का जादू, जानें उनके जन्मदिवस पर अनकहे किस्से
Happy Birthday Major Dhyan Chand: भारत में हॉकी के स्वर्णिम युग के साक्षी मेजर ध्यानचंद का नाम ऐसे लोगों में शुमार है जिन्होंने अपने क्षेत्र में ऐसी महारत हासिल की, कि उनका नाम हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. मेजर ध्यान चंद की हॉकी में ऐसा जादू था कि विरोधी टीमें देखकर ही घबरा जाती थीं. एक बार नीदरलैंड में एक टूर्नामेंट के दौरान उनकी हॉकी स्टिक को तोड़ कर जांचा गया कि कहीं इसमें चुंबक तो नहीं लगी है.
हालांकि स्टिक को तोड़ने के बाद भी किसी के हाथ कुछ नहीं लगा क्योंकि जादू हॉकी स्टिक में नहीं ध्यानचंद के हाथों में था. 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यान चंद का आज 29 अगस्त को जन्मदिन है. उनके जन्मदिन के दिन को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day) के तौर पर मनाया जाता है. आज इस मौके पर आपको बताते हैं उनके जीवन के अनकहे किस्से.
कभी पहलवानी में थी रुचि
कहा जाता है कि बचपन में मेजर ध्यान चंद का रुझान पहलवानी की ओर था. उन्होंने प्रयागराज में पहलवानी के तमाम दांवपेच भी सीखे. लेकिन उनके पिता सेना में थे. पिता का झांसी में ट्रांसफर होने के बाद ध्यानचंद भी उनके साथ झांसी चले गए. वहां जाने के बाद उनका रुझान हॉकी की तरफ हो गया.
ध्यान सिंह से ऐसे बन गए ध्यान चंद
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मेजर ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह था. वे 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में एक सिपाही के रूप में शामिल हो गए थे और मेजर रैंक के साथ रिटायर हुए. कहा जाता है सेना की ड्यूटी पूरी करने के बाद ध्यान सिंह अक्सर रात को चांद की रोशनी में हॉकी का अभ्यास करते थे. इसलिए लोग उन्हें चांद के नाम से पुकारा करते थे. धीरे-धीरे वे चांद से चंद और फिर ध्यानचंद कहलाने लगे.
ओलंपिक में लगातार 3 बार स्वर्ण दिलाया
मेजर ध्यान चंद भारत को लगातार तीन बार (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजेलिस और 1936 बर्लिन) में हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाया. उन्होंने 1936 के बर्लिन ओलंपिक फाइनल में जर्मनी पर भारत की 8-1 की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसमें वह 3 गोल के साथ टॉप स्कोरर भी बने थे. 1936 के ओलंपिक को देखने के लिए हिटलर भी वहां पर पहुंचा था. भारतीय टीम की जीत से हिटलर काफी चिढ़ गया था और मैदान छोड़कर वहां से चला गया था.
हिटलर का प्रस्ताव को ठुकराया
कहा जाता है कि ओलंपिक में जीत हासिल करने के बाद हिटलर ने ध्यानचंद को डिनर पर बुलाया और पूछा कि तुम खेलने के अलावा और क्या काम करते हो. इस पर मेजर ध्यानचंद ने कहा कि मैं भारतीय सेना का सैनिक हूं. इसके बाद हिटलर ने उन्हें जर्मनी की सेना में उच्च पद पर भर्ती होने का प्रस्ताव दिया, लेकिन मेजर ध्यानचंद ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि मैं एक भारतीय सैनिक हूं और भारत को आगे बढ़ाना मेरा कर्तव्य है. मेजर ध्यानचंद एक सच्चे देशभक्त थे. उन्होंने अपनी हर जीत को हमेशा भारतीयों को ही समर्पित किया.
मेजर के सम्मान में जन्मदिन पर मनाया जाता है खेल दिवस
मेजर जब मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी. अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे. हर साल उन्हें याद करते हुए उनके जन्म दिन के मौके पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है. इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं.
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07:39 AM IST