Mirza Ghalib Birthday: सिर्फ शायरी नहीं, ग़ालिब की हाज़िर जवाबी के किस्से भी हैं मशहूर, यहां जानें खास बातें
ग़ालिब की जितनी शायरी मशहूर हैं, उतना ही उनके हाज़िर जवाबी के किस्से भी प्रसिद्ध हैं. आज मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्मदिन (Mirza Ghalib Birthday) के मौके पर जानते हैं कुछ खास किस्से और मशहूर शायरी.
अगर आप शेर और शायरी के शौकीन हैं तो मिर्ज़ा ग़ालिब का नाम तो हर हाल में जानते होंगे. उर्दू और फारसी के इस मशहूर शायर का पूरा नाम 'मिर्ज़ा असद उल्लाह बेग खां उर्फ ग़ालिब' था. कहा जाता है कि मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) की जिंदगी बहुत दर्द और मुश्किलों में गुजरी थी. कम उम्र पर ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था और इसके बाद 7 बच्चों को. यही वजह है कि ग़ालिब की शायरी में दिखने वाले दर्द ने उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया. लेकिन आपको बता दें कि ग़ालिब की जितनी शायरी मशहूर हैं, उतना ही उनके हाज़िर जवाबी के किस्से भी प्रसिद्ध हैं. आज मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्मदिन (Mirza Ghalib Birthday) के मौके पर आइए यहां जानते हैं कुछ खास किस्से और मशहूर शायरी.
गधे नहीं खाते हैं आम
मिर्ज़ा ग़ालिब आम खाने के बहुत शौकीन थे. कहा जाता है कि एक बार मिर्ज़ा ग़ालिब अपने कुछ दोस्तों के साथ आम खा रहे थे. तभी वहां से एक गधा गुजर रहा था. उसने आम की तरफ देखा भी नहीं और वहां से गुजर गया. इस बीच उनके दोस्तों ने मस्ती मजाक में पूछा कि मियां आम में ऐसा क्या है कि इसे गधे भी नहीं खाते हैं. इस पर मिर्ज़ा ग़ालिब बोले 'मियां, जो गधे हैं वो आम नहीं खाते.'
जब अंग्रेज कर्नल भी जवाब सुनकर चौंक गया था
मिर्ज़ा ग़ालिब का एक और किस्सा है, जब अंग्रेज कर्नल को उन्होंने ऐसा जवाब दिया कि उससे कर्नल भी चौंक गया था. एक बार ग़ालिब का सामना अंग्रेज कर्नल से हुआ. ग़ालिब का हुलिया देखकर अंग्रेज ने पूछा कि क्या आप मुसलमान हैं. इस पर मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा कि मैं आधा मुसलमान हूं. जवाब सुनकर कर्नल चौंक गया और आश्चर्य से बोला आधा मुसलमान? जवाब में मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा, जी हां, क्योंकि मैं शराब तो पीता हूं लेकिन सुअर नहीं खाता. उनका जवाब सुनकर कर्नल भी अपनी हंसी को रोक नहीं सका.
मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर शायरी
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मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.
उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त,
लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है.
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक.
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12:17 PM IST