पति नहीं कह सकता- 'सब तेरा घाटा, मेरा कुछ नहीं जाता', शेयर ट्रेडिंग के केस में सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि अगर पति और पत्नी के बीच मौखिक समझौता होता है, तो पति को पत्नी के स्टॉक ट्रेडिंग अकाउंट के डेबिट बैलेंस के लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि अगर पति और पत्नी के बीच मौखिक समझौता होता है, तो पति को पत्नी के स्टॉक ट्रेडिंग अकाउंट के डेबिट बैलेंस के लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. यह मामला एसी चौकसी शेयर ब्रोकर बनाम जितिन प्रताप देसाई केस में आया था, जहां कोर्ट ने कहा कि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के नियमों के तहत पति पर जिम्मेदारी डाली जा सकती है.
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि BSE के बाय-लॉ 248(a) के तहत, अगर पति ने मौखिक रूप से यह स्वीकार किया था कि वह पत्नी के अकाउंट से जुड़े लेन-देन के लिए जिम्मेदार होगा, तो इस पर आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल पति के खिलाफ केस चला सकता है. कोर्ट ने कहा कि यह समझौता किसी "निजी" लेन-देन की तरह नहीं माना जा सकता, जो आर्बिट्रेशन से बाहर होता है.
मामला कैसे शुरू हुआ?
यह विवाद पत्नी के ट्रेडिंग अकाउंट में हुए डेबिट बैलेंस से जुड़ा था. 1999 में ब्रोकर ने पति और पत्नी के लिए अलग-अलग ट्रेडिंग अकाउंट खोले थे, लेकिन बाद में ब्रोकर ने दावा किया कि दोनों ने मिलकर उन अकाउंट्स को चलाने और किसी भी नुकसान के लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार होने की सहमति दी थी. 2001 की शुरुआत में पत्नी के अकाउंट में बड़ा डेबिट बैलेंस था, जबकि पति के अकाउंट में क्रेडिट बैलेंस था. पति के कहने पर, ब्रोकर ने पति के अकाउंट से पैसे पत्नी के अकाउंट में ट्रांसफर किए, लेकिन शेयर बाजार में गिरावट के कारण डेबिट बैलेंस और बढ़ गया.
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इसके बाद ब्रोकर ने आर्बिट्रेशन के जरिए दोनों से पैसे की वसूली की. पति ने इस दावे को गलत ठहराते हुए कहा कि उन्हें आर्बिट्रेशन में शामिल नहीं किया जाना चाहिए था और यह ट्रांसफर SEBI के दिशा-निर्देशों के खिलाफ था. पहले यह मामला बॉम्बे हाई कोर्ट में चला, जहां फैसला पति के हक में आया, जिसके बाद ब्रोकर ने उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इस मामले में पति को शामिल किया जाना सही था. कोर्ट ने यह भी माना कि पति और पत्नी के बीच की मौखिक समझौते को लेकर आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का फैसला उचित था और यह SEBI के दिशा-निर्देशों के खिलाफ नहीं था.
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पति और पत्नी के बीच वित्तीय लेन-देन से यह साबित होता है कि पति ने यह जिम्मेदारी स्वीकार की थी. इस तरह आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का फैसला सही था और पति को ज्वाइंट रूप से जिम्मेदार ठहराया गया. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट को भी इस मामले को सही से हैंडल ना करने के लिए फटकार लगाई.
लगाया भारी जुर्माना
कोर्ट ने आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के फैसले को मंजूरी देते हुए पति और पत्नी से ₹1,18,48,069 रुपये के साथ 9% ब्याज की वसूली करने का आदेश दिया, जो 1 मई 2001 से लेकर भुगतान की तारीख तक लागू होगा.
11:14 PM IST